110 अवैध मदरसों पर लगा ताला
उत्तराखंड में अवैध मदरसों पर एक्शन जारी
हरिद्वार, 21 मार्च (एजेंसियां)। बीते माह अधिकारियों ने बिना पंजीकरण के चल रहे 200 से ज़्यादा मदरसों की पहचान की, जिनमें उधम सिंह नगर ज़िले में सबसे ज़्यादा 129 मदरसे थे, उसके बाद देहरादून में 57 और नैनीताल में 26 मदरसे थे। उत्तराखंड में इन दिनों अवैध मदरसों के खिलाफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सख्ती जारी है। गुरुवार 20 मार्च को ऊधम सिंह नगर में 16 और हरिद्वार में 2 मदरसों को सील कर दिया गया। अब तक राज्य में 110 मदरसों पर ताला लग चुका है। पिछले एक महीने से प्रशासन लगातार ऐसे मदरसों पर कार्रवाई कर रहा है, जो बिना सरकार की अनुमति के चल रहे थे।
ऊधम सिंह नगर के रुद्रपुर में 4, किच्छा में 8, बाजपुर में 3, जसपुर में 1 और हरिद्वार के श्यामपुर क्षेत्र में 2 मदरसे सील हुए। इससे पहले देहरादून और पौड़ी में 92 मदरसों पर भी ऐसी ही कार्रवाई हो चुकी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने साफ कहा है कि राज्य के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं होगी। उनके इस बयान से लोगों में उम्मीद जगी है कि गलत काम करने वालों को सबक मिलेगा। धामी ने कहा, जो भी धर्म की आड़ में अवैध गतिविधियां चलाएगा, उसके खिलाफ सख्त एक्शन होगा। हरिद्वार के गैंडीखाता की गुर्जर बस्ती में दो मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे थे, जिन्हें गुरुवार को सील कर दिया गया। हरिद्वार के एसडीएम अजयवीर सिंह ने कहा, हमें सीएम के आदेश मिले हैं। उन मदरसों पर कार्रवाई करने और उन्हें सील करने के आदेश दिए गए हैं जो न तो मदरसा बोर्ड और न ही शिक्षा विभाग से पंजीकृत हैं। आदेश आज ही आए हैं इसलिए जैसे-जैसे हमें पता चलता जाएगा हम सील की कार्रवाई करते जाएंगे।
प्रशासन अब ये भी जांच कर रहा है कि इन मदरसों के पीछे कौन लोग हैं और वहां बच्चों को क्या सिखाया जा रहा था। हरिद्वार के डीएम कर्मेंद्र सिंह ने बताया कि जिले में 60 से ज्यादा अवैध मदरसे चिन्हित किए गए हैं। बीते माह अधिकारियों ने बिना पंजीकरण के चल रहे 200 से ज़्यादा मदरसों की पहचान की, जिनमें उधम सिंह नगर ज़िले में सबसे ज़्यादा 129 मदरसे थे, उसके बाद देहरादून में 57 और नैनीताल में 26 मदरसे थे।
कुछ माह पहले जिले के सहसपुर क्षेत्र का एक मदरसा जिसका नाम जामी उल उलूम है, चर्चाओं में आया था। वजह थी इस मदरसे में लगी पानी की टंकी सरकारी थी या निजी तौर पर इसको बनाया गया, टंकी के ऊपर लाउड स्पीकर भी लगे थे, जिन्हें बाद में प्रशासन ने उतरवा दिया था। पानी की टंकी को लेकर प्रशासन ने क्या जांच पड़ताल की? कोई बात सामने नहीं आई। यदि पानी की टंकी, मदरसे की निजी थी तो क्या मदरसा इंतजामिया कमेटी ने प्राधिकरण से इसके निर्माण की अनुमति ली हुई थी? क्योंकि मामला यहां तालीम ले रहे बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ था। मदरसे के निर्माण भी कथित रूप से कुछ हिस्सा सरकारी भूमि पर कब्जा करके किया गया था।
इस मंजिल के निर्माण और पूर्व निर्माण संबंधी कोई अनुमति मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण से नहीं ली गई है। आम तौर पर अनुमति इस लिए नहीं ली जाती जब भूमि या अन्य दस्तावेजों में प्रमाणिकता की कमी हो। प्रशासनिक अनुमति के लिए दस्तावेज पूरे होने जरूरी है। अनुमति न लेने का एक कारण ये भी है कि दस्तावेज दिखाने पर पता चल जाएगा कि कितनी सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया हुआ है। इस मदरसे का एक दरवाजा पीछे सूखी नदी की तरफ खुलता है। बताया गया है कि उक्त नदी श्रेणी की जमीन पर ही अवैध कब्जा कर मदरसे भवन को विस्तार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि 2009 के बाद कोई भी धार्मिक स्थल बिना डीएम की अनुमति के बगैर नहीं बनाया जा सकता। ये मदरसा और मस्जिद दोनों है इस लिए यहां किसी भी निर्माण के लिए प्रशासन की अनुमति आवश्यक है। बहरहाल ये मदरसा एक बार फिर सुर्खियों में है, क्या यहां हो रहा निर्माण अवैध है? इस बारे में जांच पड़ताल जरूरी है। इस मदरसे में निर्माण के बारे में जब एसडीएम विनोद कुमार से जानकारी मांगी गई तो उनका कहना था कि प्राधिकरण द्वारा मदरसा इंतजामिया कमेटी को नोटिस जारी किया गया है।