प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को पहले से कहीं अधिक बढ़ा रही है आगे:राजनाथ
चेन्नई 10 अप्रैल (एजेंसी)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा है कि प्रौद्योगिकी भू-राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को पहले से कहीं अधिक आगे बढ़ा रही है।
श्री सिंह ने तमिलनाडु के पहाड़ी नीलगिरी जिले के वेलिंगटन में रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों - रोबोटिक्स, सैन्य स्वायत्तता, ड्रोनरी, क्वांटम, ब्लॉक चेन, अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक्स, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग और इसी तरह की अन्य तकनीकें महत्वपूर्ण तरीकों से प्रतिरोध और युद्ध लड़ने में क्रांति ला रही हैं।
उन्होंने कहा,“युद्ध भूमि, समुद्र और हवा के पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़कर अंतरिक्ष, साइबर, समुद्र के नीचे और रचनात्मक प्रयासों के नए क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ रहा है।”
रक्षा मंत्री ने कहा कि उदाहरण के लिए यूक्रेन-रूस संघर्ष में ड्रोन का उभरना वस्तुतः एक नए हथियार के रूप में, यदि एक परिवर्तनकारी विज्ञान नहीं है तो सैनिकों और उपकरणों के अधिकांश नुकसान के लिए न तो पारंपरिक तोपखाने और न ही कवच को जिम्मेदार ठहराया गया है बल्कि ड्रोन को जिम्मेदार ठहराया गया है। उन्होंने कहा कि इसी तरह पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष क्षमताएं सैन्य खुफिया, निरंतर निगरानी, स्थिति निर्धारण, लक्ष्यीकरण और संचार को बदल रही हैं। इस प्रकार युद्ध को एक नए स्तर पर ले जा रही हैं।
उन्होंने युद्ध के मैदानों में तकनीकी नवाचार की शक्ति को देखते हुए कहा कि चल रहे संघर्ष और समकालीन रुझान इस तथ्य को उजागर करते हैं कि युद्ध की पारंपरिक धारणाओं को फिर से लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि उभरती हुई प्रौद्योगिकियां मानव रहित प्रणालियों और एआई पूर्वानुमान के आगमन के साथ युद्ध के चरित्र को प्रभावित कर रही हैं जो स्वायत्त युद्ध का युग है। उन्होंने कहा,“आज युद्ध भूमि, समुद्र और हवा के पारंपरिक युद्धक्षेत्रों से आगे निकल गया है।”
उन्होंने इस तथ्य पर जोर देते हुए कि सशस्त्र बलों को बहु-क्षेत्रीय वातावरण में संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता है जहां साइबर, अंतरिक्ष और सूचना युद्ध पारंपरिक अभियानों की तरह ही शक्तिशाली होंगे।
श्री सिंह ने कहा,“हम ग्रे जोन और हाइब्रिड युद्ध के युग में हैं जहां साइबर हमले, गलत सूचना अभियान और आर्थिक युद्ध ऐसे उपकरण बन गए हैं जो एक भी गोली चलाए बिना राजनीतिक-सैन्य उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि भारत और इस मामले में दुनिया को सुरक्षा चुनौतियों की एक विविध श्रेणी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा,“हमारे मामले में हम अपनी उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर लगातार खतरों का सामना कर रहे हैं। यह हमारे पड़ोस में आतंकवाद के केंद्र से उत्पन्न छद्म युद्ध और आतंकवाद के खतरे से और भी जटिल हो गया है। पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष और हमारे पूर्व में इंडो पैसिफिक में भू-राजनीतिक तनाव हमारे समग्र सुरक्षा गणित पर अपना प्रभाव डालते हैं।”
इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन प्रभावों सहित गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों को संबोधित करने की क्षमता तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है।
श्री सिंह ने कहा,“इससे मेरे मन में यह सवाल उठता है कि आप सभी के लिए इसका क्या मतलब है? जिस माहौल का मैंने अभी वर्णन किया है, जहाँ हमारे आस-पास की दुनिया तेज़ी से विकसित हो रही है, हर दिन नई सुरक्षा गतिशीलता और चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, हर देश और आप में से हर एक का ध्यान वक्र से आगे रहने और भविष्य के लिए तैयार रहने पर होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि भारत 2047 तक प्रधानमंत्री के विकसित भारत के दूरदर्शी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, एक पूर्ण विकसित, आत्मनिर्भर और विश्व स्तर पर सम्मानित भारत, यह पहचानना ज़रूरी है कि यह दृष्टिकोण दो आधारभूत स्तंभों- सुरक्षित भारत और सशक्त भारत पर दृढ़ता से टिका हुआ है।
उन्होंने कहा,“सुरक्षित भारत हमें सपने देखने का आत्मविश्वास देता है, सशक्त भारत हमें उन सपनों को हासिल करने की ताकत देता है।” श्री सिंह ने कहा,“हमारे सशस्त्र बल, अटूट सतर्कता और बलिदान के माध्यम से एक सुरक्षित भारत सुनिश्चित करते हैं।”
श्री सिंह ने अपने संबोधन की शुरुआत कुछ दिन पहले आए भीषण भूकंप के समय म्यांमार और थाईलैंड के प्रति भारत के लोगों की एकजुटता और समर्थन व्यक्त करते हुए की और कहा कि भारत हमेशा संकट के समय अपने मित्रों के साथ खड़ा रहा है और समय पर राहत पहुंचाई है। उन्होंने कहा कि वैश्विक भू-राजनीति आज तीन प्रमुख मानदंडों द्वारा पुनर्परिभाषित की जा रही है। ये तीन मानदंड राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने की दिशा में एक प्रमुख धुरी हैं, जो वैश्विक परिदृश्य में व्याप्त एक तकनीकी सुनामी है और नवाचार को गति दे रही है।
उन्होंने कहा,“राष्ट्रीय सुरक्षा पेशेवरों के रूप में यदि आपको रणनीतिक-सैन्य परिवर्तन वक्र पर आगे रहना है तो आपको इन प्रवृत्तियों की बारीकियों का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।”
श्री सिंह ने कहा कि इसके साथ ही व्यापार और वित्त का हथियारीकरण और आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों पर एकाधिकार और डेटा प्रवाह की पारदर्शिता को लेकर चिंताएं भी हैं।
उन्होंने कहा,“इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया स्व-सहायता और एकतरफा निर्णयों के युग की ओर बढ़ रही है जिससे वैश्विक संस्थाओं और व्यवस्था में गिरावट आ रही है। हम आज अपनी आंखों के सामने इसे घटित होते हुए देख रहे हैं।”
श्री सिंह ने 2047 तक विकसित भारत के दूरदर्शी लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए, पर कहा कि इसकी शुरुआत हमारे सशस्त्र बलों के विकास और आधुनिकीकरण से होनी चाहिए।
उन्होंने कहा,“आज प्रौद्योगिकी एक सहायक तत्व नहीं बल्कि संचालन के लिए निर्णायक सक्षमकर्ता है। इसलिए हमारे सशस्त्र बलों को न केवल तकनीकी परिवर्तनों के साथ तालमेल रखना चाहिए, बल्कि उनका नेतृत्व भी करना चाहिए। हमारे लिए कम लागत वाले उच्च तकनीक समाधान विकसित करने और सशस्त्र बलों की युद्ध क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।”
श्री सिंह ने कहा,“भविष्य के युद्धों के लिए सक्षम और प्रासंगिक बने रहने के लिए, हमें अपने सशस्त्र बलों के परिवर्तन को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। खतरों और युद्ध लड़ने की पद्धतियों की बदलती प्रकृति को ध्यान में रखते हुए नए दृष्टिकोण, सिद्धांत, संचालन की अवधारणाएँ और संरचनाओं को बनाने और परिष्कृत करने की आवश्यकता है।”