डॉल्फिनों का हो रहा शिकार, पर मदमस्त सरकार..!

 भारत की नदियों में रहने वाली 6,000 डॉल्फिनें संकट में

डॉल्फिनों का हो रहा शिकार, पर मदमस्त सरकार..!

शुभ-लाभ सरोकार

भारत की सबसे लंबी और सबसे पवित्र नदी गंगा हजारों डॉल्फिनों का घर है। लेकिन उनका अस्तित्व खतरे में है। महाकुंभ के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डॉल्फिनों को लेकर अघा रहे थे और सरकारी दस्तावेज दिखा रहे थे। लेकिन वे इस तथ्य से कन्नी काट रहे थे कि गंगा की डॉल्फिनों को मारा जा रहा है। उनकी पोचिंग हो रही है और उनका तेल निकाला जा रहा है।

डॉल्फिन का शिकार उनके मांस और वसा के लिए किया जा रहा हैजिससे मछली पकड़ने के लिए चारा के रूप में तेल निकाला जाता है। कई बारवे नावों से टकरा जाती हैं या मछली पकड़ने की रेखाओं में फंस जाती हैं और मर जाती हैं। वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के नचिकेत केलकर ने बताया कि कई मछुआरे अक्सर कानूनी परेशानी के डर से डॉल्फिन की आकस्मिक मौतों की रिपोर्ट नहीं करते हैं। भारतीय वन्यजीव कानूनों के तहतआकस्मिक या लक्षित डॉल्फिन की हत्या को शिकार माना जाता है और इसके लिए सख्त दंड का प्रावधान है। नतीजतनकई गरीब मछुआरे जुर्माने से बचने के लिए चुपचाप शवों का निपटारा कर देते हैं।

भारत में नदी डॉल्फिन कभी-कभी मछली पकड़ने के जाल में फंस जाती हैं। पिछले दशक में भारत में नदी क्रूज पर्यटन में तेज़ी से वृद्धि हुई हैजिससे उनके आवास को और भी ज़्यादा ख़तरा पैदा हो गया है। गंगा और ब्रह्मपुत्र दोनों नदियों पर दर्जनों क्रूज यात्राएं संचालित होती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि क्रूज से होने वाली गड़बड़ी डॉल्फिन पर गंभीर रूप से असर डाल रही है। डॉल्फिनें शोर के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। जहाजों के बढ़ते आवागमन से गंगा की डॉल्फिन विलुप्त हो सकती हैंठीक वैसे ही जैसे चीन की यांग्त्जी नदी में बैजी डॉल्फिनों के साथ हुआ था।

Read More किसान नेता समेत बेटे और भाई की गोली मारकर हत्या

1980 से अब तक कम से कम 500 डॉल्फिनें मर चुकी हैं। कई गलती से मछली पकड़ने के जाल में फंस गईं या जानबूझकर मार दी गईं। यह इस प्रजाति के लिए चल रहे खतरे को उजागर करती हैं। संरक्षणवादी रवींद्र कुमार सिन्हा कहते हैं कि 2000 के दशक की शुरुआत तक नदी डॉल्फिन के बारे में बहुत कम जागरूकता थी। 2009 मेंगंगा नदी डॉल्फिन के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इसे भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया गया था। 2020 की कार्य योजना और 2024 में एक समर्पित शोध केंद्र जैसे कदमों ने तब से इसकी संख्या को पुनर्जीवित करने में मदद की है। हालांकिसंरक्षणवादियों का कहना है कि अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

Read More ऐसा लगता है कि सिद्धरामैया ने कीमतें बढ़ाने के लिए ही विशेषज्ञ समिति गठित की: विजयेंद्र

गंगा नदी की डॉल्फिनें महासागरों में पाई जाने वाली डॉल्फिनों की तरह नहीं हैं। वे पानी से बाहर शानदार चाप में छलांग नहीं लगाती। लंबे अंतराल के लिए सतह पर नहीं आतीं या सीधे खड़े होकर तैरती नहीं हैं। इसके बजायवे नदी में किनारे किनारे तैरती हैं। अपना अधिकांश समय पानी के नीचे बिताती हैं। उनके थूथन लंबे होते हैं और वे लगभग पूरी तरह से अंधे होते हैं। ये गंगा डॉल्फिन प्रजाति देश के उत्तरी भाग में गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में बड़े पैमाने पर पाई जाती हैं। एक नए सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत की नदियों में लगभग 6,327 नदी डॉल्फिन हैं। इनमें 6,324 गंगा डॉल्फिन और सिर्फ तीन सिंधु डॉल्फिन हैं। अधिकांश सिंधु डॉल्फिन पाकिस्तान में पाई जाती हैं क्योंकि नदी दोनों दक्षिण एशियाई देशों से होकर बहती है।

Read More राज्यपाल के पास वीटो का अधिकार नहीं

इन दोनों डॉल्फिन प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं ने भारत की नदी डॉल्फिन की पहली व्यापक गणना करने के लिए 2021 और 2023 के बीच 10 राज्यों की 58 नदियों का सर्वेक्षण किया। नदी डॉल्फिन की उत्पत्ति और उसके विकास की कथा अत्यंत रोचक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अक्सर जीवित जीवाश्म कहे जाने वाले ये जीव लाखों साल पहले समुद्री पूर्वजों से विकसित हुए थे। जब कभी दक्षिण एशिया के निचले इलाकों में समुद्र भर जाता थातो ये डॉल्फिन अंतर्देशीय इलाकों में चली जाती थीं। जब पानी कम हो जाता थातो वे वहीं रहती थीं। समय के साथ वे गंदीउथली नदियों के अनुकूल हो गईंऔर उनमें ऐसे गुण विकसित हुए जो उन्हें समुद्र में रहने वाले अपने भाइयों से अलग करते थे। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी डॉल्फिनों की आबादी पर नजर रखने के लिए नया सर्वेक्षण महत्वपूर्ण है।

Tags: