देश को बांटने के बाद भी नेहरू ने क्यों जारी रखा वक्फ कानून
मुस्लिम तुष्टीकरण के कांग्रेसी दुष्चरित्र का खामियाजा देश भुगतेगा

नेहरू ने थोपा वक्फ बोर्ड, कॉन्ग्रेसी सरकारों ने पाला-पोसा
नई दिल्ली, 4 अप्रैल, (एजेंसी)। वक्फ संशोधन कानून को लेकर देश में चर्चा जारी है। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मस्जिदों संचालन के लिए दिए गए दो गाँवों से शुरू हुआ भारत में वक्फ संपत्ति का रिवाज आज 9.4 लाख एकड़ तक पहुँच गया है। आज भारत में वक्फ के पास 8.7 लाख से ज्यादा संपत्तियाँ हैं। दुनिया के किसी भी देश, यहाँ तक कि मुस्लिमों मुल्कों में भी वक्फ के पास इतनी संपत्तियाँ नहीं हैं।
भारत में वक्फ की औपचारिक शुरुआत का श्रेय इस्लामी आक्रांता मोहम्मद गोरी को दिया जाता है। गोरी अफगानिस्तान के घोर प्रांत से आया एक तुर्की शासक था, जिसने 12वीं सदी के अंत में भारत पर कई हमले किए। 1175 में उसने मुल्तान के इस्माइली शासक को हराया था। गोरी ने सन 1185 में मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गाँव दान में दिए। इन गाँवों का मैनेजमेंट शेख-अल-इस्लाम को सौंपा गया।
मुगल काल में भी मस्जिद-मकबरों-दरगाहों को इस्लामी शासक बड़ी-बड़ी संपत्तियाँ देते रहे। अंग्रेज जब आए तो उन्होंने इस पर नियंत्रण करने की कोशिश की, लेकिन मुस्लिमों के विरोध के बाद उन्होंने इसे कानूनी रूप से दे दिया। इस कानून का ड्राफ्ट पाकिस्तान के जन्मदाता मोहम्मद अली जिन्ना ने तैयार किया था। भारत जब आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेेहरू ने इसे जारी रखा।
मुस्लिम तुष्टिकरण हवा देते हुए पहली सन 1954 में देश के पंडित नेहरू ने वक्फ एक्ट बनाया। इससे वक्फ बोर्ड नाम की एक संस्था बनी। इस कानून के तहत कॉन्ग्रेस की सरकार ने बँटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान गए मुस्लिमों की जमीनें एवं संपत्तियाँ वक्फ बोर्डों को दे दीं। इस कानून के लागू होने के एक साल बाद यानी सन 1955 में इसमें संशोधन करके हर राज्य में वक्फ बोर्ड बनाए जाने की बात कही गई।
इसका परिणाम ये हुआ है कि आज देश के करीब 32 राज्यों में वक्फ बोर्ड हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं। ये बनाए तो गए थे वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन, देखरेख और उनका प्रबंधन करने के लिए, लेकिन ये बोर्ड आज सरकारी जमीनों-इमारतों के साथ-साथ हिंदुओं के पूरे-के-पूरे गाँवों तक पर दावा किए जाने लगे।
सन 1964 में एक संशोधन पारित किया गया था। इसके तहत केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के केंद्रीकरण को बढ़ावा देना शामिल था। यह भारत सरकार का एक वैधानिक निकाय है। यह केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आता है। इसका काम केंद्र सरकार को सलाह देना है।
दरअसल, CWC का उद्देश्य वक्फ संबंधित मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देने का काम था। यह सलाह वक्फ संपत्तियों के रख-रखाव से संबंधित होता था। CWV का अध्यक्ष केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री होता है। सन 1984 में वक्फ प्रशासन के पुनर्गठन के लिए वक्फ जाँच समिति गठित की गई। उसकी रिपोर्ट का मुस्लिमों ने भारी विरोध किया। इसके बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
शाहबानो और मंडल-कमंडल के बीच बाबरी ढाँचा गिरने के बाद तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नई परिभाषा लिखी। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने दो बड़े विवादित कानून बनाए। इनमें से एक पूजा स्थल अधिनियम और दूसरा वक्फ बोर्ड 1995 शामिल है। वक्फ बोर्ड 1995 में तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड को बेहद ताकतवर बना दिया।
इस एक्ट की धारा 3(R) में कहा गया कि अगर किसी संपत्ति को मुस्लिम कानून के मुताबिक पवित्र, मजहबी या परोपकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। इसमें ये कहा गया है कि यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई भी जमीन किसी मुस्लिम की है तो वह उसे वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। इसके लिए वक्फ बोर्ड को कोई कागजात पेश करने की जरूरत नहीं होगी।
उस जमीन पर जिस व्यक्ति को आपत्ति होगी, उसे कागजात दिखाकर साबित करना होगा कि यह उसकी संपत्ति है। इतना ही नहीं, इस अधिनियम की धारा 40 में कहा गया है कि जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। बोर्ड का यह निर्णय ही अंतिम होगा, जब तक कि उस निर्णय पर वक्फ ट्रिब्यूनल रोक ना लगा दे या उसे बदल ना दे।
इसके अलावा, बोर्ड उस किसी भी संपत्ति की जाँच कर सकता है, जिसके वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जाता है। इस धारा में आगे कहा गया है कि अगर वक्फ बोर्ड को विश्वास हो जाता है कि यह वक्फ की संपत्ति है तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दे सकता है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ कानून की धारा 40 को ‘काला कानून’ बताया है।
बात यहीं रूक जाती तो समझ में आता। कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-2 (UPA-2) के शासनकाल में वक्फ अधिनियम को और मजबूत किया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2013 में वक्फ कानून में संशोधन करके वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार दे दिए गए। इस संशोधन के जरिए वक्फ बोर्ड को स्वायत्ता दे दी गई।
इस संशोधन के जरिए इससे जुड़े विवाद में कलेक्टर को भी हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया। इस कानून में कहा गया कि अगर वक्फ बोर्ड किसी व्यक्ति संपत्ति को वक्फ संपत्ति बता देता है तो उसके खिलाफ वह कोर्ट नहीं जा सकता। उसे वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगाना होगा। अगर बोर्ड बात नहीं मानता है तो वह वक्फ ट्रिब्यूनल जा सकता है।
हालाँकि, कानून में यह भी प्रावधान कर दिया गया है कि विवादित मामले में वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला ही अंतिम अंतिम होगा। इस फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं। इस तरह न्याय पाने के सारे दरवाजे को इस कानून के माध्यम से यूपीए सरकार ने हमेशा के लिए बंद कर दिया है।
अगर वर्तमान में हम वक्फ बोर्ड की संरचना की बात करें तो इसमें एक सर्वे कमिश्नर होता है। यह सर्वे कमिश्नर संपत्तियों का लेखा-जोखा रखता है। इसके अलावा, बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम IAS अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता और मुस्लिम बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल होते हैं।
वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। ट्रिब्यूनल में कौन शामिल होगा, इसका फैसला संबंधित राज्य की सरकार करती है। मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति और वोटबैंक की राजनीति के कारण राज्य सरकारें आमतौर पर वक्त बोर्ड और ट्रिब्यूनल में मुस्लिमों को ही शामिल करती हैं, ताकि वो खुद को मुस्लिम हितैषी दिखा सके।