नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र को नजरबंद किया गया
नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी का आंदोलन तेज
पूर्व नरेश पर मुकदमा चलाने का कुचक्र कर रही सरकार
सम्पूर्ण नेपाल में निषेधाज्ञा लागू कर हो रही गिरफ्तारियां
काठमांडू, 29 मार्च (एजेंसियां)। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में राजतंत्र की बहाली और फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित किए जाने की मांग देशव्यापी आंदोलन का शक्ल लेती जा रही है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में कल हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस के बल प्रयोग के कारण भड़की हिंसा में दो लोगों के मारे जाने और दर्जनों लोगों के जख्मी होने के बाद नेपाल की स्थिति संवेदनशील हो गई है। राजधानी काठमांडू के कई इलाकों में कल से ही कर्फ्यू लागू है। नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को उनके आवास में ही नजरबंद कर दिया गया है। आंदोलन से घबराई नेपाल सरकार पूर्व नरेश पर मुकदमे ठोक कर उन्हें जेल भेजने की तिकड़म में लगी है।
नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी की मांग करने वाले आंदोलनकारियों और उनके नेताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की जा रही हैं। आंदोलन में शरीक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा महामंत्री को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प, आगजनी की दर्जनों घटनाएं, पत्रकार को जिंदा जलाए जाने की वारदात के बाद पहले गृह मंत्रालय और फिर बाद में प्रधानमंत्री ने शुक्रवार की देर रात को कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई। शुक्रवार की देर रात को प्रधानमंत्री केपी ओली की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में चारों सुरक्षा अंग नेपाली सेना, नेपाल पुलिस, सशस्त्र प्रहरी बल और खुफिया विभाग के प्रमुखों को भी बुलाया गया। इस दौरान मौजूदा परिस्थितियों और उनसे निपटने के बारे में विचार किया गया। बैठक के बाद सरकार के प्रवक्ता पृथ्वी सुब्बा गुरूंग ने कहा कि आंदोलन को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने हिंसा का ठीकरा प्रदर्शन के आयोजकों पर फोड़ा और कहा कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया है।
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता छवि रिजाल ने कहा है कि इस संपूर्ण घटना के लिए आयोजक जिम्मेदार हैं। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया। इसके बाद राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के महामंत्री और सांसद धवल शमशेर राणा, पार्टी के उपाध्यक्ष रवीन्द्र मिश्र, संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक नवराज सुवेदी और प्रवक्ता स्वागत नेपाल सहित 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। पूरे काठमांडू में पुलिस द्वारा सर्च ऑपरेशन चला कर आंदोलन में शामिल नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया जा रहा है।
काठमांडू पुलिस प्रमुख एसएसपी विश्व अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के बड़े नेताओं और तोड़फोड़ आगजनी में जिन लोगों की पहचान हुई है, उनकी गिरफ्तारी की गई है। राजशाही की वापसी के लिए गठित संयुक्त जनसंघर्ष समिति के कमांडर बनाए गए दुर्गा प्रसाई की गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया है, लेकिन कई स्थानों पर छापा मारने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका है।
सरकार के निर्देश पर नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह के निर्मल निवास को हथियारबंद जवानों और नेपाली सेना के द्वारा घेरेबंदी में ले लिया गया है। पूर्व नरेश को उनके आवास में ही नजरबंद किया गया है। पूर्व नरेश की हैसियत से ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को अभी भी नेपाली सेना की वीवीआईपी सुरक्षा मिली हुई है। नेपाल सरकार राजशाही के पक्ष में हो रहे प्रदर्शनों और शुक्रवार को हुई हिंसा के लिए ज्ञानेंद्र शाह को मुख्य जिम्मेदार बनाने का कुचक्र रच रही है। सरकार पूर्व नरेश के खिलाफ मुकदमा चलाने और जेल में ठूंसने की तैयारी में है।
उल्लेखनीय है कि साल 2008 में नेपाल के सियासी दलों ने संसद की घोषणा के जरिए 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म किया और हिंदू राष्ट्र को एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, लोकतांत्
काठमांडू में राजतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव ने राजा और राजतंत्र को नेपाल की राजनीति के केंद्र में ला दिया है। यह आंदोलन पुराने राजतंत्र को बहाल करने का प्रयास मात्र है। माओवादियों के 10 साल के जनयुद्ध और मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के जन आंदोलन के बाद बनी पहली संविधान सभा ने 2008 में नेपाल के 238 साल पुराने राजतंत्र को खत्म कर देश को गणतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया था। लेकिन इस सियासी बदलाव के बावजूद नेपाली समाज में राजा के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ था। 2008 में सभी राजनीतिक दल माओवादियों के जनयुद्ध से परेशान थे और एक नई संवैधानिक व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहते थे। इसलिए संघात्मक शासन, गणतंत्र और धर्मनिरपेक्ष नेपाल की कल्पना का कोई विशेष विरोध नहीं हुआ। लेकिन राजा समर्थक ताकतें वहां मौजूद थीं।
जब पहली संविधान सभा नेपाल का संविधान बनाने में असफल रही और 2013 में दूसरी संविधान सभा का गठन हुआ, तो नेपाली कांग्रेस, एमाले और माओवादी जैसे सभी राजनीतिक दल लगभग एक समान एजेंडे को लेकर चल रहे थे। लेकिन राजा समर्थक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी का चुनावी एजेंडा अलग था। वह हिंदू राष्ट्र, संवैधानिक राजतंत्र और एकात्मक शासन का झंडा उठाए चल रही थी। इस चुनाव में उसे प्रत्यक्ष निर्वाचन में कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन समानुपातिक प्रणाली में उसके 25 प्रत्याशी संविधान सभा में जगह पा गए। लेकिन 2017 में संविधान लागू होने के बाद उसकी स्थिति खराब हो गई और उसे केवल 2 प्रतिशत मत मिले। यह मत प्रतिशत 2022 में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गया। इसके बाद राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी में विभाजन भी हो गया। इसके बाद भी यह पार्टी काफी प्रभावशाली है। मुख्य राजनीतिक दलों से मोहभंग की हालत यह है कि राजा समर्थक आंदोलन का चेहरा बने दुर्गा परसाई एक पुराने माओवादी हैं।
राजा के प्रति सहानुभूति उभरने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला नेपाल के राजनीतिक दलों के बीच सिद्धांत की प्रतिस्पर्धा और सत्ता के प्रति अतिरिक्त अनुराग। 2008 से 2025 के 17 सालों में यहां 11 सरकारें बन चुकी हैं। इसका सीधा अर्थ है कि कोई भी सरकार डेढ़ साल के औसत कार्यकाल की रहीं। तीन प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, माओवादी और एमाले आपस में कुर्सी दौड़ में इतना अधिक व्यस्त रहे कि जनता के प्रति इनका कोई ध्यान नहीं रहा। केंद्र की अस्थिरता का प्रभाव राज्यों पर भी पड़ा और वहां भी सरकारें केंद्र के साथ ही बनती बिगड़ती रहीं। इतनी अधिक राजनीतिक अस्थिरता के कारण जनता का विशेष तौर पर मध्यम वर्ग का इन राजनीतिक दलों से मोहभंग होना शुरू हो गया। पिछले चुनाव में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के तौर पर एक राजनीतिक दल का उदय हो गया। अपने जन्म के छह माह में ही इसने चुनाव में अपनी असरदार मौजूदगी दर्ज करा दी। इस पार्टी के नेता को उप-प्रधानमंत्री पद पर पहुंचा दिया। इस पार्टी को मध्यम वर्ग के अलावा विदेशों में रहने वाले नेपालियों का समर्थन भी हासिल था।
राजतंत्र के समर्थन में इस आंदोलन का दूसरा कारण भारत में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में उभरता दक्षिणपंथ और राष्ट्रवाद है। नेपाल में यह राजा समर्थक नेताओं को प्रभावित करता है। फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्तमान में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के महंत हैं और गोरक्ष पीठ का नेपाल की जनता में काफी प्रभाव है और राजा भी उनको अपने गुरु के रूप में मान्यता देते हैं। इधर नेपाल के अंदर राजा के समर्थन और विरोध में दलों और संगठनों के बीच गोलबंदी होने लगी है। राजा समर्थक दल नवीन समझदारी नाम से एकत्रित होने लगे हैं, तो विरोधी समाजवादी फ्रंट के तहत एकजुट हो रहे हैं। एमाले और माओवादी, दोनों दल राजा को चुनौती दे रहे हैं कि अगर लोकप्रिय हो तो चुनाव में आकर दिखाओ। प्रचंड इसके लिए वर्तमान प्रधानमंत्री केपी ओली को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं कि उनके कमजोर नेतृत्व के कारण राजा को सहानुभूति मिली है। यह मामला अभी शांत होने वाला नहीं है और भविष्य में यही नेपाल की राजनीति के केंद्र में रहेगा।