जज-जज मौसेरे भाई..!

कानून सबके लिए समान... तो जज पर क्यों नहीं होने दी एफआईआर..?

जज-जज मौसेरे भाई..!

जज के घर नोटों का जखीरा, सुप्रीम कोर्ट ने किसका उठाया बीड़ा?

हमारे आपके घरों में मिलते नोटों के बंडल तो क्या करता कानून?

दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से जले-अधजले नोटों के जखीरे की बरामदगी मामले में यह साबित हो गया कि देश का कानून सबके लिए बराबर नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस मामले की लीपापोती कर दी। जिस मामले में कानून को स्वाभाविक रूप से अपना काम करना चाहिए था, वह जज के मामले में अस्वाभाविक रंग दिखाता सामने आया। जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने के लिए याचिका तक दाखिल करनी पड़ी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। क्या ऐसे मामले में लिप्त किसी आम नागरिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है? भ्रष्टाचारी जज के खिलाफ महाभियोग चलाने जैसी बातें अब भारत में संभव नहीं रही। जज यशवंत वर्मा का महज ट्रांसफर कर भ्रष्टाचार की फाइल बंद कर दी गई। इस धतकरम में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों की साठगांठ रही। इस तरह देश की सर्वोच्च अदालत ने भारत में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता पर आधिकारिक मुहर लगा दी है। अब देश में कहीं भी किसी नागरिक के खिलाफ भ्रष्टाचार में लिप्त होने का मामला चले तो न्यायाधीशों को शर्म आएगी या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनसे यह पूछा तो जाएगा ही।

कानून के विशेषज्ञ भी कहते हैं कि प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कानून उस तरह कार्रवाई नहीं करती जैसे आम नागरिकों पर करती है। जजों और प्रभावशाली लोगों को न्यायिक-राजनीतिक-प्रशासनिक संरक्षण मिलता है। अगर ऐसे लोगों की गिरफ्तारी हो गई तो उन्हें जमानत भी जल्दी मिल जाती है। जबकि आम आदमी को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। मीडिया भी आम आदमी के मामले को कठोरता से दिखाता है और प्रभावशाली लोगों के मामले में पूंछ हिलाता है। अगर आम आदमी के घर से इतने रुपए बरामद होते तो पुलिसआयकर विभागप्रवर्तन निदेशालय या सीबीआई जैसी एजेंसियां तुरंत कूद पड़तीं। आरोपी को हिरासत में लेकर फौरन पूछताछ शुरू हो जाती। मनी लॉन्ड्रिंग, आयकर अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम जैसे कानून की विभिन्न धाराओं के तहत धड़ाधड़ मामला दर्ज होता। अवैध आय घोषित कर भारी जुर्माना लगाया जाता। संपत्तियां जब्त करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती। जब्ती का पंचनामा बनता। सारे बैंक खाते फ्रीज कर दिए जाते। जमानत के लाले पड़ जाते। लेकिन जज यशवंत वर्मा मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आप सबने यह देख लिया है। जज के घर पर नोटों की बरामदगी का पूरा हिसाब-किताब हुआ भी नहीं था कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय की जांच रिपोर्ट और सिफारिश दोनों सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। आनन फानन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कॉलेजियम की बैठक बुला ली और तुरंत जज यशवंत वर्मा का प्रयागराज ट्रांसफर करने का फरमान जारी कर दिया। ऐसे लगा कि जैसे सारी न्यायपालिका कुछ छुपाने के लिए बेचैन थी और बदहवासी में फैसले ले रही थी। भारत सरकार ने भी जज वर्मा के ट्रांसफर पर बिना कोई देर किए मुहर लगा दी। फौरन अधिसूचना भी जारी कर दी गई। हास्यास्पद यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी गठित की, लेकिन समिति ने भी अब तक वही किया या आगे भी वही करेगी जो पहले से नियोजित है। अगर जज यशवंत वर्मा की जगह कोई सामान्य आदमी होता तो क्या होतायह अहम सवाल भारत की न्यायपालिका पर बदनुमा दाग की तरह चस्पा हो गया है। भ्रष्टाचारी को महिमामंडित नहीं करने की भाषणबाजियों का असली सत्य पूरे देश ने जान लिया है।

जज यशवंत वर्मा के खिलाफ सरकारी परिसर में अवैध नकदी मिलने के मामले में एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हुई? एफआईआर दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर क्यों विवश होना पड़ा? सुप्रीम कोर्ट ने मामले की आंतरिक (इन-हाउस) जांच जारी रहने के नाम पर एफआईआर क्यों खारिज कर दी? क्या किसी आम आदमी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ऐसा ही करती? या भविष्य में ऐसा ही करेगी? जबकि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जांच करना कोर्ट का काम नहीं है। इसे पुलिस पर छोड़ देना चाहिए। इन-हाउस कमिटी वैधानिक प्राधिकरण नहीं है। यह विशेष एजेंसियों द्वारा की जाने वाली जांच का विकल्प नहीं हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि होली के दिन 14 मार्च 2025 की रात करीब 11.30 बजे जज वर्मा के घर में आग लगी। आग की सूचना घर वालों ने जज वर्मा को दी, जो उस समय दिल्ली के बाहर थे। इसके बाद जज वर्मा के निजी सचिव ने दिल्ली फायर ब्रिगेड को इसकी सूचना दी। दमकल की दो गाड़ियों ने 15 मिनट में आग पर काबू पा लिया। उस दौरान स्टोर रूम में बोरों में भरकर रखे भारी मात्रा में नोट जल चुके थे। नोटों के बारे में दमकल कर्मियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताया। आग बुझने के बाद जज वर्मा के निजी सचिव ने मौके पर पहुंचे पांच पुलिसकर्मियों को वहां से चले जाने को कहा। जब इस मामले के जांच अधिकारी अगली सुबह जज वर्मा के आवास पर आए तो उन्हें वापस भेज दिया गया। दिल्ली पुलिस ने घटना की रात को पंचनामा नहीं बनाया। तुगलक रोड थाने में एक दैनिक डायरी दर्ज की गईलेकिन उसमें वित्तीय बरामदगी का जिक्र भी नहीं किया गया। घटना के 8 घंटे बाद इसकी जानकारी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा को मिली। नई दिल्ली जिला के एडिशनल डीसीपी ने 15 मार्च को अपने वरिष्ठ अधिकारियों को वह डायरी सौंपी। इसके बाद दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को घटना की जानकारी दी गई और नोटों में लगी आग का वीडियो भी दिखाया गया। इसके बाद पुलिस कमिश्नर ने इसकी जानकारी गृह मंत्रालय को दी। घटना की जानकारी मिलते ही दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय फौरन सक्रिय हो गए और फिर सुप्रीम कोर्ट भी सक्रिय हो गया। यह सक्रियता कानूनी कार्रवाई के लिए थी या कानून को ताक पर रखने के लिए थी, यह जगजाहिर हो चुका है...

Read More सुधार के नाम पर निजीकरण की तैयारी

Tags: