अब वक्फ की प्रॉपर्टी नहीं रहेगी संभल की मस्जिद
नया वक्फ कानून संरक्षित स्मारकों को करेगा कब्जे से मुक्त
संभल, 06 अप्रैल (एजेंसियां)। वक्फ कानून बनते ही संभल की जामा मस्जिद वक्फ की सम्पत्ति नहीं रहेगी। वक्फ (संशोधन) एक्ट के सेक्शन 3डी के तहत, जो सम्पत्ति आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के अधीन संरक्षित घोषित है, वो वक्फ की नहीं हो सकती। इसमें संभल की मस्जिद के अलावा देश भर की कई दूसरी इस्लामिक इमारतें भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर फैसले का हवाला देते हुए पुरातत्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जमीन पर इस्तेमाल के आधार पर दावा माना था। लेकिन नए एक्ट के मुताबिक इस्तेमाल का नियम तभी लागू होगा, जब जमीन पर कोई विवाद न हो या वो सरकारी सम्पत्ति न हो। इस एक्ट से एएसआई के तहत आने वाली सारी वक्फ सम्पत्तियां अपनी पहचान खो देंगी। नए वक्फ कानून मेंस एएसआई की कानून परिधि बढ़ा दी गई है, लिहाजा अब वो सारी सम्पत्तियां वक्फ के हाथ में नहीं रहेंगी, जो एएसआई के संरक्षण में रही हैं।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार 5 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) बिल को मंजूरी दे दी, जिसके बाद यह कानून बन गया। मूल एक्ट के सेक्शन 3 में कई बदलाव किए गए हैं। इस सेक्शन में लिखा है, इस एक्ट या किसी पुराने कानून के तहत वक्फ सम्पत्तियों के लिए जारी कोई घोषणा या नोटिफिकेशन तब रद्द माना जाएगा, अगर वो सम्पत्ति उस घोषणा या नोटिफिकेशन के वक्त प्राचीन स्मारक संरक्षण एक्ट, 1904 या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष एक्ट, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक या संरक्षित इलाका था। वक्फ (संशोधन) एक्ट का सेक्शन 3डी यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी ऐसी जगह पर वक्फ का दावा नहीं किया जा सकता, जो पहले से ही हेरिटेज कानूनों के तहत संरक्षित स्मारक या इलाका घोषित हो चुकी हो। अगर पहले इस एक्ट या किसी पुराने कानून के तहत ऐसी कोई घोषणा हुई थी, तो अब उसे कानूनी तौर पर रद्द मान लिया जाएगा। इस नियम का मकसद ऐतिहासिक स्मारकों, खासकर एएसआई की सुरक्षा में आने वाले स्मारकों को धार्मिक दावों के तहत दोबारा वर्गीकृत होने या उन पर कब्जा होने से बचाना है, ताकि भारत की पुरातत्व और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखा जा सके।
नवंबर 2024 में संभल कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद की सर्वे करने का आदेश दिया। ये आदेश हरि शंकर जैन, महंत ऋषिराज गिरी और कुछ अन्य लोगों की याचिका के जवाब में आया था। याचिका में दावा किया गया कि ये मस्जिद भगवान कल्कि को समर्पित सदियों पुराने श्री हरि हर मंदिर की जगह पर बनाई गई थी, जिसे बाबर ने तोड़ दिया था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये जगह हिंदुओं के लिए बहुत धार्मिक महत्व रखती है और मुगल काल में इसे जबरदस्ती मस्जिद में बदल दिया गया। साथ ही ये 1904 के प्राचीन स्मारक संरक्षण एक्ट के तहत एक संरक्षित स्मारक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है। उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा हालात उनके धर्म को मानने के संवैधानिक अधिकार को ठेस पहुंचा रहे हैं और इस जगह पर आम लोगों की पहुंच बहाल करने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए।
याचिका में श्री हरि हर मंदिर के प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व को बताया गया। इसमें कहा गया कि हिंदू शास्त्रों में इस जगह को बहुत पवित्र माना जाता है और ये भगवान कल्कि के अवतार से जुड़ी है। जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि भगवान कल्कि को भगवान विष्णु का दसवां और आखिरी अवतार माना जाता है। हिंदू मान्यता के मुताबिक, कल्कि संभल में प्रकट होंगे और कलियुग को खत्म करके सतयुग की शुरुआत करेंगे।
महिस्मत नदी के किनारे रोहिलखंड के बीच में बसे संभल शहर को अलग-अलग युगों में अलग-अलग नामों से जाना जाता था। सतयुग में सब्रित या संभलेश्वर। त्रेतायुग में महादगिरी। द्वापरयुग में पिंगला और कलियुग में संभल। भगवान कल्कि को समर्पित श्री हरि हर मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसे सृष्टि की शुरुआत में भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार कहा जाता है। ये मंदिर हिंदू धर्म में खास जगह रखता है, क्योंकि ये भगवान विष्णु और शिव की एकता को दिखाता है, जैसा कि शास्त्रों में लिखा है: यथा शिवस्तथा विष्णु, यथा विष्णुस्तथा शिवः यानी जैसा शिव है, वैसा विष्णु; जैसा विष्णु है, वैसा शिव। ये मंदिर प्राचीन वास्तुकला का शानदार नमूना था। याचिका में कहा गया कि ये आध्यात्मिक महत्व और खूबसूरत डिजाइन का मेल था। याचिका के मुताबिक, मुगल आक्रमण के दौरान इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। बाबर के सेनापति हिंदू बेग ने 1527-28 में इसे आंशिक रूप से तोड़ा और मस्जिद में बदल दिया। ऐसा कहा जाता है कि ये काम बाबर के आदेश पर हुआ था, ताकि इस्लाम की ताकत दिखाई जा सके और स्थानीय हिंदू आबादी का मनोबल तोड़ा जा सके।
इस घटना का जिक्र बाबर की डायरी (बाबरनामा) में मिलता है। इसमें लिखा है कि हिंदू बेग ने मंदिर को मस्जिद में बदला। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मस्जिद के अंदर बाबर का नाम लिखी एक शिला (पत्थर का नेमप्लेट) बाद में बनाई गई नकली चीज है, जिसका मकसद मंदिर को मस्जिद में बदलने को सही ठहराना था। याचिका में इस विवादित जगह के नियंत्रण और प्रबंधन के कानूनी और प्रशासनिक इतिहास की बात भी की गई। इसमें एएसआई की भूमिका का जिक्र है। 22 दिसंबर 1920 को यूनाइटेड प्रोविंस की सरकार के सचिव ने एक्ट के सेक्शन 3(3) के तहत एक नोटिफिकेशन जारी कर इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे ये जगह एएसआई के नियंत्रण में आ गई। इसलिए एएसआई को इसका कानूनी संरक्षक होना चाहिए, जो इसकी देखभाल, प्रबंधन और आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करे।
1904 के प्राचीन स्मारक संरक्षण एक्ट और फिर 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष एक्ट के तहत, एएसआई को ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों को बचाने और उनकी देखभाल करने का कानूनी अधिकार है। 1958 के एक्ट के सेक्शन 18 के मुताबिक, एएसआई को ये सुनिश्चित करना है कि इन स्मारकों तक आम लोगों की पहुंच बनी रहे। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एएसआई अपनी इस कानूनी जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम रही, खासकर तब जब इस जगह पर धार्मिक विवाद चल रहा है। एएसआई की निष्क्रियता की वजह से जामा मस्जिद की मैनेजमेंट कमेटी ने इस जगह पर लोगों की पहुंच रोक दी। उनका मानना है कि ये हिंदू भक्तों के उस अधिकार का उल्लंघन है, जो इस जगह को श्री हरि हर मंदिर का मूल स्थान मानते हैं, जिसे मुगलों ने तोड़ा था।
इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एएसआई ने इस जगह को सुरक्षित करने, इसके ऐतिहासिक महत्व को बनाए रखने या उन निशानों और चीजों को बचाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए, जो इसके हिंदू मूल को साबित कर सकते हैं। उनका कहना है कि ये एएसआई की कानूनी जिम्मेदारियों को पूरा न करने की नाकामी है। बता दें कि 19 नवंबर 2024 को पहला सर्वे तनाव भरे माहौल में हुआ, लेकिन शांति से पूरा हो गया और कोई हिंसा नहीं हुई। मगर 24 नवंबर 2024 को दूसरा सर्वे शुरू होते ही स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। कोर्ट द्वारा नियुक्त टीम जब मस्जिद के अंदर सर्वे कर रही थी, तब बड़ी संख्या में मुस्लिम भीड़ ने मस्जिद और आसपास के इलाकों को घेर लिया।
गुस्साई भीड़ का विरोध जल्दी ही हिंसक हो गया। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात पुलिस टीमों पर हमला हुआ। दंगाइयों ने पुलिस पर पत्थर और डंडों से हमला किया और गोलीबारी भी की। संभल हिंसा के बाद स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और पुलिस ने दोषियों को पकड़ने के लिए कई कदम उठाए। जांच में पता चला कि संभल के सांसद जिया उर रहमान बर्क समेत स्थानीय नेताओं ने भीड़ को भड़काया था और ये हिंसा पहले से प्लान की गई थी। घटनास्थल से पाकिस्तान में बनी गोलियां भी मिलीं, जिसने जांच को और गंभीर बना दिया। 45 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया और कई एफआईआर के तहत मामले चल रहे हैं।
जनवरी 2025 में मस्जिद का सर्वे रिपोर्ट चंदौसी कोर्ट में सील बंद लिफाफे में जमा किया गया। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, मस्जिद में दो बरगद के पेड़ हैं, जो आमतौर पर हिंदू मंदिरों से जुड़े होते हैं, जहां उनकी पूजा होती है। इसके अलावा मस्जिद के अंदर एक कुआं है, जिसका एक हिस्सा अंदर और दूसरा बाहर है। कुएं का बाहरी हिस्सा ढका हुआ था। सर्वे रिपोर्ट में करीब साढ़े चार घंटे की वीडियोग्राफी शामिल थी, जिसमें लगभग 1,200 तस्वीरें ली गईं। मस्जिद में ऐसे निशान हैं, जो उस दौर के मंदिरों और हिंदू स्थानों की पहचान हैं। मंदिर की मूल वास्तुकला को दरवाजों, खिड़कियों और सजी हुई दीवारों पर प्लास्टर और पेंट लगाकर छिपा दिया गया है।
संभल की जामा मस्जिद का मामला सीधे तौर पर बताता है कि सेक्शन 3D क्यों जरूरी था। 1920 से ये एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक है, फिर भी इसे वक्फ सम्पत्ति के तौर पर दावा किया जाता रहा। इससे न सिर्फ हिंदू भक्तों की पहुंच रुकी, जो इसे श्री हरि हर मंदिर मानते हैं, बल्कि एएसआई को भी दिक्कत हुई। वक्फ (संशोधन) एक्ट कानूनी साफगोई लाता है और ऐसे संरक्षित स्मारकों को धार्मिक या प्रशासनिक झगड़ों में फंसने से बचाता है।