पीएम मोदी के स्वागत का श्रीलंकाई गर्मजोश, उड़ा रहा था होश
बांग्लादेश की बदमाशी और चीन की चालाकी का करारा जवाब
शुभ-लाभ प्रसंग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का श्रीलंका दौरा भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। बांग्लादेश की ताजा शैतानियों और चीन की चिर-परिचित मक्कारी के मद्देनजर पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा रणनीतिक और कूटनीतिक नजरिए से काफी महत्वपूर्ण है। मोदी का यह दौरा कई मायनों में रणनीतिक के साथ-साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी अहमियत रखता है। श्रीलंका भीषण आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश कर रहा है। भारत ऐसे समय में श्रीलंका का लगातार साथ दे रहा है। मौजूदा यात्रा में भी मोदी ने ऋण को सहायता की परिधि में रखने की महत्वपूर्ण घोषणा की। भारत के इस सहयोग को देखते हुए ही श्रीलंका भी भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए उत्सुक और उत्साही है। इस दौरे के दौरान रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, और डिजिटलीकरण जैसे क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर हो रहे हैं। उससे चीन का परेशान होना स्वाभाविक है। पीएम मोदी के इस दौरे का महत्व चीन के संदर्भ में भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चीन पिछले अनेक वर्ष से श्रीलंका को अपने पैसे के प्रभाव में लेकर उसे कर्ज में डुबाता आया है। इतना ही नहीं, भारत के साथ उसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों को भी विस्तारवादी कम्युनिस्ट चीन ने पर्याप्त आघात पहुंचाया है। इसलिए विशेषज्ञों की मोदी के इस दौरे पर खास नजर है।
श्रीलंका में मोदी की उपस्थिति में भारत और श्रीलंका के बीच लगभग आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुआ। इनमें रक्षा सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है। यह पहली बार है जब दोनों देशों के बीच रक्षा समझौता होने जा रहा है, जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। श्रीलंका सागर से घिरा है इसलिए उसकी भौगोलिक स्थिति रणनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखती है। रक्षा सहयोग के दायरे में भारत और श्रीलंका, दोनों देश इसका लाभ उठाने की स्थिति में हैं।
श्रीलंका में चीन का प्रभाव पिछले कुछ वर्षों में बढ़ता दिखा है। विशेषकर हंबनटोटा बंदरगाह जैसे रणनीतिक स्थानों पर चीन की पैनी नजर रही है। चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज देकर उस देश में अपने प्रभाव को मजबूत किया है, जिससे भारत के लिए चुनौती उत्पन्न होती रही है। मोदी का वर्तमान दौरा कोलंबो पर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की भारत की रणनीति का हिस्सा रहेगा। रक्षा समझौते और अन्य सहयोगी परियोजनाएं श्रीलंका को भारत के साथ अधिक मजबूती से जोड़ने में मदद करेंगी।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी का श्रीलंका दौरा भारत की नेबर-फर्स्ट यानि पड़ोसी-प्रथम की नीति को और मजबूत करेगा। सामरिक मामलों के जानकार इसे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की चुनौती का जवाब मानते हैं। रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यह दौरा भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा और चीन के प्रभाव को कम करने में मदद करेगा। भारत ने पहले भी श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबरने में मदद की है। इस दौरे के दौरान ऋण पुनर्गठन और आर्थिक सहायता पर चर्चा होने की संभावना है। इसके अलावा, ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए नई व्यवस्था पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं।
भारत और श्रीलंका के संबंध ऐतिहासिक और प्रगाढ़ रहे हैं। इन संबंधों में कुछ मील के पत्थर भी रहे हैं जिनको दर्ज कराने वाले अनेक समझौते हुए हैं। ये सभी समझौते दोनों देशों के बीच सहयोग को मजबूत करते आए हैं। भारत और श्रीलंका के बीच कुछ प्रमुख समझौतों की बात करें तो ध्यान में आता है साल 2000 में हुआ मुक्त व्यापार समझौता। इसने बेशक, दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही आर्थिक और तकनीकी सहयोग समझौता भी मुक्त व्यापार समझौते पर आधारित है और आर्थिक तथा तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है। इसी तरह विशिष्ट डिजिटल पहचान परियोजना भारत द्वारा वित्त-पोषित है। इस परियोजना का उद्देश्य श्रीलंका में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है। त्रिंकोमाली ऊर्जा केंद्र समझौता त्रिंकोमाली को एक क्षेत्रीय ऊर्जा और औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए हुआ है। सामरिक रक्षा सहयोग समझौते के तहत स्लिनेक्स और मित्र शक्ति जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करते आए हैं। बेशक, भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक, सामरिक और सामाजिक सहयोग को नई ऊंचाई पर देने वाले ये सभी समझौते महत्वपूर्ण परिणाम दिखा रहे हैं। लेकिन चीन ने 2019 से 2024 के बीच उस टापू देश के अर्थतंत्र में दखल देकर उसकी कमर तोड़ने में कसर नहीं रखी थी। देश कंगाल होकर गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच गया था। श्रीलंका के तत्कालीन नेतृत्व के हाथ से देश का नियंत्रण खो चुका था। लेकिन तब भी भारत ने कूटनीतिक माध्यमों द्वारा श्रीलंका की भरसक मदद करने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री मोदी का वर्तमान श्रीलंका दौरा भी दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक प्रभाव छोड़ेगा। लेकिन मूल सवाल यही है कि वहां चीन का प्रभाव कितना कम होगा। मोदी की कूटनीति के जानकार बताते हैं कि मोदी की कोशिश होगी कि श्रीलंका चीन के शिकंजे से बाहर आए और एक संप्रभु राष्ट्र के नाते विकास करे। इसका संकेत मिलने भी लगा है।