देश में समान नागरिक संहिता जरूरी

कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण वक्तव्य

 देश में समान नागरिक संहिता जरूरी

मजहब के आधार पर महिलाओं से होता है भेदभाव

बेंगलुरु, 06 अप्रैल (एजेंसियां)। कर्नाटक हाईकोर्ट ने संसद एवं राज्य विधानसभाओं से समान नागरिक संहिता (यूसीसीलागू करने के लिए हर संभव प्रयास करने का आग्रह किया है। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 तहत समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने से भारत के संविधान की प्रस्तावना में निहित उद्देश्य और आकांक्षाएं सही मायने में साकार होंगी।

जस्टिस हंचते संजीवकुमार की एकल पीठ ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने से महिलाओं के लिए न्याय सुनिश्चित होगासभी जातियों और धर्मों में समानता को बढ़ावा मिलेगा तथा भाईचारे के माध्यम से व्यक्तिगत गरिमा कायम रहेगी। न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुसार भारत में सभी महिलाएं एक नागरिक के तौर पर समान हैंलेकिन पर्सनल लॉ उनके साथ भेदभाव करते हैं। पीठ ने कहासंविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपने सबसे शानदार भाषण में समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेलडॉ. राजेंद्र प्रसादटी कृष्णमाचारी और मौलाना हसरत मोहानी जैसे प्रमुख नेताओं ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था।

हाईकोर्ट ने कहा कि धर्म के आधार पर बने पर्सनल लॉ के कारण महिलाओं के भेदभाव होता है। हिंदू कानून के तहत बेटी को बेटे के समान जन्मसिद्ध अधिकार और पत्नी को अपने पति के बराबर दर्जा प्राप्त है। हालांकिमुस्लिम कानून के तहत ऐसी समानता नहीं दिखाई देती है। इसलिएहाईकोर्ट ने कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जोर दिया।

कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश हंचते संजीव कुमार ने समान नागरिक संहिता कानून को लेकर संविधान सभा का तर्क दिया। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में भी समान नागरिक संहिता विवाद का एक विषय था। जस्टिस संजीवकुमार ने कहा कि संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया और कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का भी हवाला दिया। इनमें मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम और अन्य (1985)सरला मुद्गल (श्रीमती) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1995) और जॉन वल्लमट्टम और अन्य बनाम भारत संघ (2003) प्रमुख हैं। इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने संसद को समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने का सुझाव दिया था।

Read More शिवकुमार और डॉ. मंजूनाथ ने एक ही मंच पर आकर ध्यान किया आकर्षित

कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की। अब्दुल बशीर खान नामक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच सम्पत्ति बंटवारे को लेकर विवाद हो गया। अब्दुल बशीर ने अपनी मृत्यु से पहले कोई वसीयत नहीं लिखी थी। वे अपने पीछे कई अचल सम्पत्तियां छोड़ गएजिनमें से कुछ पैतृक थीं तथा कुछ उन्होंने स्वयं अर्जित की थीं। अब्दुल बशीर की मौत के बाद उनकी सम्पत्ति के बंटवारे को लेकर उनके बच्चों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। बेटी शहनाज बेगम की मौत के बाद उनका प्रतिनिधित्व उनके शौहर सिराजुद्दीन मक्की (प्रतिवादी) ने किया। मक्की ने आरोप लगाया कि उन्हें सम्पत्ति के बंटवारे से बाहर रखा गया और उसमें से उन्हें उचित हिस्सा नहीं दिया गया। इसको लेकर मक्की ने बेंगलुरु सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। नवंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने माना कि विचाराधीन तीन सम्पत्तियां संयुक्त परिवार की सम्पत्ति का हिस्सा हैं और शहनाज बेगम उन में पांचवें हिस्से की हकदार हैं। हालांकिट्रायल कोर्ट ने अन्य सम्पत्तियों को बंटवारा योग्य नहीं बताया। ट्रायल कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट अब्दुल बशीर के दो बेटों समीउल्ला खान और नूरुल्ला खान तथा बेटी राहत जान (अपीलकर्ता) ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील दायर की। इधरसिराजुद्दीन मक्की ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आपत्ति दायर कीजिसमें अपने हिस्से को बढ़ाने या पहले के आदेश में संशोधन की मांग की गई। हाईकोर्ट ने दोनों पक्ष की याचिकाओं को स्वीकार किया और अपील एवं आपत्ति याचिकादोनों पर एक साथ सुनवाई की। तमाम दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

Read More किसानों को चीनी मिलों द्वारा लगभग ७००-८०० करोड़ का भुगतान किया जाना बाकी: शिवानंद पाटिल

Tags: