कर्नाटक में मुसलमानों को आरक्षण देने का रास्ता साफ
बेंगलुरु, 13 अप्रैल (एजेंसियां)। कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण बढ़ाने की तैयारी है। इसकी सिफारिश कर्नाटक में की गई जाति जनगणना रिपोर्ट में की गई है। ओबीसी आरक्षण में बढ़ोतरी का सीधा फायदा मुस्लिमों को होने वाला है। मुसलमान कर्नाटक राज्य में सबसे बड़ा ओबीसी समूह है। जाति जनगणना की यह रिपोर्ट हाल ही में कर्नाटक कैबिनेट के सामने पेश की गई है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार इस जातिगत जनगणना के नए सर्वे पर 17 अप्रैल को बैठक करने वाली है। इस सर्वे में ओबीसी आरक्षण 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है। इसी रिपोर्ट में मुस्लिम आरक्षण को भी 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है।
17 अप्रैल को होने वाली कैबिनेट बैठक में इस आरक्षण को लेकर फैसला लिया जा सकता है। इसी बैठक में यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने सम्बन्धित फैसला भी हो सकता है। कर्नाटक की जाति जनगणना रिपोर्ट में की गई सिफारिश अगर मानी जाती हैं, तो राज्य में कुल आरक्षण 85 प्रतिशत हो जाएगा। इस 85 प्रतिशत में 51 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण होगा जबकि 24 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए रहेगा। इसके अलावा 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानि ईडब्लूएस को पहले की तरह मिलता रहेगा। इस रिपोर्ट को लेकर राज्य में बहस चालू हो गई है।
यह जातिगत जनगणना कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने करवाई थी। यह 2015 में एच. कांथराज के नेतृत्व में शुरू हुई थी। इसके बाद 2020 में के. जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने इसे पूरा किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी और मुस्लिम आरक्षण को बढ़ाने की सिफारिश तो की है लेकिन एससी-एसटी तथा ईडब्लूएस आरक्षण को पहले की तरह ही रखने की बात कही है। अभी इस पर अंतिम फैसला बाकी है।
कर्नाटक में मुस्लिम ओबीसी में सबसे बड़ा समूह है। राज्य में उनकी आबादी 75.25 लाख है। मुस्लिम ओबीसी कर्नाटक के ओबीसी वर्गीकरण की श्रेणी 2B के अंतर्गत आते हैं। इसी के आधार पर रिपोर्ट में उनका आरक्षण 4 प्रतिशत से दोगुना करके 8 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है। राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 18.08 प्रतिशत है, जो 2011 की जनगणना में 12.92 प्रतिशत बताई गई थी। सर्वे का यह आंकड़ा 2015 का है। ऐसे में 4 साल में मुस्लिम आबादी कर्नाटक में 5.16 प्रतिशत बढ़ गई। रिपोर्ट में इस आरक्षण बढ़ाने के पीछे राज्य में ओबीसी की हिस्सेदारी सबसे अधिक होना कारण बताया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 69.60 प्रतिशत है, ऐसे में उन्हें जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए
इस रिपोर्ट में आरक्षण को 50 प्रतिशत से ऊपर ले जाने के क्रम में बाधा को भी पार करने की बात की गई है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी मामले में दिए गए फैसले के अनुसार, कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दे सकता है। ईडब्लूएस आरक्षण इससे अलग है। यदि कर्नाटक के पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट की सिफारिश मानी गई तो यह आरक्षण 50 प्रतिशत से कहीं अधिक 85 प्रतिशत हो जाएगा। रिपोर्ट में इसके लिए झारखंड और तमिलनाडु का उदाहरण दिया गया है, जहां पहले ही 77 प्रतिशत और 69 प्रतिशत आरक्षण दिया जा चुका है। रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के इन्द्रा साहनी फैसले को आज के समय में प्रांसगिक ना होना बताया गया है।
कर्नाटक में आरक्षण पर से सीमा हटाने की बात ऐसे समय हो रही है जब राहुल गांधी हाल ही में इसकी वकालत कर चुके हैं। राहुल गांधी ने कहा था कि उनकी पार्टी भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की दीवार तोड़ने के पक्ष में है। कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश और मुस्लिमों को अपने पाले में करने की कोशिश कांग्रेस की चुनावी तैयारी के तौर पर देखी जा रही है। कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण पर हो रही यह पूरी कवायद अहिन्दा-वोट साधने की तरकीब मानी जा रही है। राज्य में ओबीसी, मुस्लिम और एससी-एसटी वोट को मिला कर अहिन्दा-वोट बैंक का नाम दिया जाता है। अहिन्दा शब्द कांग्रेस के बड़े नेता देवराज उर्स ने दिया था। वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्दारमैया इस फ़ॉर्मूला पर काम करते आए हैं। कांग्रेस चाहती है कि वह ओबीसी, मुस्लिम और दलित वोटरों में इन सब कदम से वह और मजबूत हो जाए, जिससे आगामी चुनावों में उसे आसानी हो। जातिगत जनगणना में आरक्षण की सिफारिश के अलावा हाल ही में मुस्लिमों को राज्य में ठेकों में आरक्षण दिया गया था। यह भी इसी दिशा में एक कदम माना गया था।
राज्य यह अहिन्दा-वोट लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय से इतर है। लिंगायत परंपरागत रूप से भाजपा जबकि वोक्कालिगा जेडी (एस) के वोटर रहे हैं। वर्तमान में यह दोनों पार्टियां साथ में हैं, ऐसे में कांग्रेस की चिंताएं और भी बढ़ गई हैं। ऐसे में वह इन दोनों समुदाय से इतर अपना अहिन्दा-वोट बैंक को बचाए रखना चाहती है।