हुब्बल्ली दंगा मामले में वापसी के मामले में विधानसभा को किया गया गुमराह
भाजपा ने राज्य सरकार पर लगाया आरोप
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| कर्नाटक विधानसभा में उस समय तीखी बहस छिड़ गई, जब भाजपा विधायक महेश तेंगिनाकाई ने राज्य की कांग्रेस नीत सरकार पर २०२२ हुब्बल्ली पुलिस स्टेशन दंगे से जुड़े १५५ व्यक्तियों के खिलाफ मामलों को वापस लेने के संबंध में सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया| नियम ६९ के तहत मुद्दा उठाते हुए, तेंगिनाकाई ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री जी परमेश्वर ने शीतकालीन सत्र के दौरान गलत जानकारी दी थी| उन्होंने कहा गृह मंत्री ने दावा किया कि १३ जून, २०२३ को अभियोजन निदेशक, सरकारी मुकदमे और कानून विभाग ने इन मामलों को वापस लेने की सिफारिश की थी| हालांकि, इन अधिकारियों से मेरी पूछताछ से पता चलता है कि उन्होंने ऐसी कोई राय नहीं दी| तेंगिनाकाई ने सरकार के बयानों की सत्यता पर सवाल उठाते हुए यह जानने की मांग की कि कानूनी समर्थन के बिना वापसी को कैसे मंजूरी दी गई| उन्होंने पूछा अगर संबंधित विभाग ने कभी कोई राय नहीं दी, तो मामला कैबिनेट के सामने कैसे पेश किया गया? कौन झूठ बोल रहा है- अभियोजन विभाग या गृह मंत्री? भाजपा नेता ने प्राथमिकी (एफआईआर) से विवरण बताते हुए १६ अप्रैल, २०२२ की घटनाओं का वर्णन किया, जब रात ९:३० बजे हुब्बल्ली पुलिस स्टेशन के बाहर भीड़ जमा हो गई, जिसे कथित तौर पर भड़काऊ संदेशों से उकसाया गया था| टेंगिनाकाई ने कहा करीब तीन घंटे तक दंगाइयों ने पुलिस अधिकारियों पर हमला किया, पुलिस कमिश्नर के वाहन को क्षतिग्रस्त किया, स्टेशन पर पथराव किया और यहां तक कि मंदिरों में आग लगाने की कोशिश की| कई अधिकारी घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया| उन्होंने आगे बताया कि मुख्य आरोपी वसीम अकरम पठान का पाकिस्तान के कराची स्थित संगठन दावत-ए-इस्लामी से संबंध था| उन्होंने कहा पठान, एक मौलवी, ने एनजीओ तंजीम-ए-अशरफिया की स्थापना की थी और पाकिस्तान और बांग्लादेश का दौरा किया था| एफआईआर में कहा गया है कि उसे लोगों को संगठित करने का प्रशिक्षण मिला था| दंगा मामले की शुरुआत में कर्नाटक पुलिस ने जांच की थी, उसके बाद इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया था| गंभीर आरोपों के बावजूद, कांग्रेस सरकार ने बाद में मामले वापस लेने का फैसला किया, इस कदम की टेंगिनाकाई ने कड़ी आलोचना की| चुनावों से पहले, हुब्बल्ली में कांग्रेस नेताओं ने सार्वजनिक रूप से वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आए तो इन मामलों को वापस ले लेंगे| पदभार संभालने के बाद, उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने गृह मंत्री को पत्र लिखकर इन मामलों को वापस लेने का अनुरोध किया| मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने आश्वासन दिया कि मामले वापस नहीं लिए जाएंगे, फिर भी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया| टेंगिनाकाई ने सरकार के रुख में विसंगतियों की ओर इशारा किया| जब मैंने पिछले सत्र में आधिकारिक जानकारी मांगी, तो मुझे बताया गया कि अभियोजन निदेशक, सरकारी मुकदमे और कानूनी विभाग से कानूनी राय ली गई थी| हालांकि, ये विभाग अब ऐसी कोई राय देने से इनकार करते हैं| १० जुलाई, २०२४ को कैबिनेट ने वापसी को मंजूरी दी और १५ जुलाई, २०२४ को एक सरकारी आदेश जारी किया गया| टेंगिनाकाई ने चेतावनी दी कि इस फैसले से आपराधिक तत्वों को बढ़ावा मिल सकता है| हुब्बल्ली मामले में वापसी के बाद, हमने मैसूरु के उदयगिरी पुलिस स्टेशन पर हमला देखा| दंगाइयों को अब लगता है कि उनके अपराधों के बावजूद उन्हें रिहा कर दिया जाएगा| पुलिस अधिकारी अपनी जान जोखिम में कैसे डाल सकते हैं, जबकि उन्हें पता है कि राजनीतिक फैसलों के कारण उनके प्रयासों पर पानी फिर सकता है?