अशोक ने सीएम पर जाति जनगणना का राजनीतिकरण करने का लगाया आरोप

-तीखे सवाल उठाए

 अशोक ने सीएम पर जाति जनगणना का राजनीतिकरण करने का लगाया आरोप

बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| कर्नाटक में विपक्ष के नेता आर अशोक ने जाति जनगणना विवाद को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धरामैया पर तीखा हमला किया है| उन्होंने उन पर पार्टी के अंदरूनी मुद्दों और व्यक्तिगत झटकों से ध्यान हटाने के लिए पिछड़े समुदायों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है|

मंगलवार को मीडिया को संबोधित करते हुए अशोक ने आरोप लगाया कि सिद्धरामैया जब भी अपनी राजनीतिक स्थिति को खतरे में पाते हैं, जाति जनगणना के मुद्दे को उठाते हैं| अशोक ने दावा किया हर बार जब उन पर दबाव पड़ता है - जैसे कि हाल ही में दिल्ली में एआईसीसी के पूर्ण अधिवेशन के दौरान - तो वे अचानक जाति जनगणना को ध्यान भटकाने के लिए ले आते हैं| यह चाल पहले से ही तय हो चुकी है| प्रशासनिक चूकों - जिसमें हनीट्रैप कांड भी शामिल है - को लेकर कांग्रेस हाईकमान से कथित तौर पर मिली फटकार का जिक्र करते हुए अशोक ने कहा जब चीजें गलत होती हैं, तो वे अपनी स्थिति को बचाने के लिए शतरंज की चाल की तरह जाति जनगणना का सहारा लेते हैं| अशोक ने पिछड़े समुदायों के उत्थान के लिए वास्तविक प्रयासों के लिए भाजपा के समर्थन को दोहराया, लेकिन ’राजनीतिक सुविधा के लिए हाशिए पर पड़े वर्गों के शोषण’ के खिलाफ चेतावनी दी| उन्होंने कहा पिछड़े समुदाय सांप-सीढ़ी के खेल में मोहरे नहीं हैं| कांताराजू आयोग की रिपोर्ट को अवैज्ञानिक, अपूर्ण और पुराना बताते हुए अशोक ने मुख्यमंत्री से कई सवाल पूछे| उन्होंने पूछा क्या आयोग के सचिव ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया? अगर ऐसा है, तो क्यों? रिपोर्ट के मूल या हस्तलिखित संस्करण को रखने वाले सीलबंद बॉक्स का क्या हुआ, जैसा कि जयप्रकाश हेगड़े ने उल्लेख किया है?

सिद्धरामैया ने २०१८ में सत्ता में रहते हुए रिपोर्ट को लागू क्यों नहीं किया? यह देखते हुए कि एक दशक पुराना सर्वेक्षण त्रुटिपूर्ण था और घरों को छोड़ दिया गया था, इसे फिर से शुरू करने की अचानक इतनी जल्दी क्यों थी? वर्तमान वास्तविकताओं के अनुकूल एक नया और अधिक सटीक सर्वेक्षण क्यों नहीं किया गया? अशोक ने कांग्रेस के भीतर से रिपोर्ट के विरोध को भी उजागर किया| यहां तक कि आपके अपने उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने भी मौजूदा जाति जनगणना को स्वीकार करने के खिलाफ याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं| श्यामनूर शिवशंकरप्पा जैसे वरिष्ठ नेताओं और कई धार्मिक नेताओं ने भी अपनी असहमति जताई है| उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार पिछले २२ महीनों में आम सहमति बनाने में विफल क्यों रही| मुख्य हितधारकों से परामर्श किए बिना अचानक रिपोर्ट को कैबिनेट में क्यों लाया गया? अशोक ने इस कदम के पीछे राजनीतिक मकसद भी सुझाए|

उन्होंने कांग्रेस के अंदरूनी मतभेदों की ओर इशारा करते हुए पूछा, क्या यह उपमुख्यमंत्री शिवकुमार के साथ सत्ता-साझाकरण समझौते में देरी करने या उसे टालने का रणनीतिक प्रयास है? क्या जाति जनगणना का इस्तेमाल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को घेरने के लिए हथियार के रूप में किया जा रहा है? उन्होंने मीडिया में जाति जनगणना के आंकड़ों के कथित लीक होने पर सरकार से सवाल करते हुए और भी गरमाहट बढ़ा दी| क्या यह एक आकस्मिक चूक थी या एक सुनियोजित लीक? उन्होंने समुदायों के प्रति रिपोर्ट के व्यवहार में विसंगतियों की ओर भी इशारा किया| वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा समूहों के लिए उप-जातियों को अलग से क्यों सूचीबद्ध किया गया, लेकिन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के लिए नहीं? इसका क्या औचित्य है? अशोक ने सीएम सिद्धरामैया से राजनीतिक अहंकार छोड़ने और पारदर्शी, समावेशी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह करते हुए निष्कर्ष निकाला| उन्होंने कहा कर्नाटक की जनता देख रही है| सामाजिक न्याय को राजनीतिक नौटंकी न बनने दें|

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