राज्यपाल की मुहर के बिना पारित हो गए 10 विधेयक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में विधायी अराजकता शुरू
तमिलनाडु सरकार को मिल गया सुप्रीम कोर्ट का बहाना
चेन्नई, 13 अप्रैल (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने देश में विधायी अराजकता की शुरुआत कर दी है। अब कोई भी राज्य मनमाने तरीके से फैसले लेगी और विधेयक पारित करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आघात करते हुए राज्यपाल और राष्ट्रपति के औचित्य पर भारी संकट ला खड़ा किया है। इस अराजकता का फायदा उठाते हुए तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने शनिवार को सभी 10 विधेयकों को अधिनियम के रूप में अधिसूचित कर दिया।
राज्यपाल की सहमति के बगैर ही तमिलनाडु सरकार ने शनिवार को 10 कानूनों को अधिसूचित कर दिया। इन्हें पहले राज्यपाल ने रोक दिया था। यह कानून उनकी सहमति के बिना ही प्रभावी हो गए। 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि का 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखने का फैसला अवैध और गलत था, जबकि राज्य विधानसभा ने उन पर पुनर्विचार कर लिया था। कोर्ट ने राज्यपालों के लिए उनके सामने पेश विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा भी तय की थी।
पिछले साल राज्यपाल ने विधेयकों को मंजूरी देने में देरी की थी और रोक लगाई थी। इनको तमिलनाडु की विधानसभा ने फिर से पारित किया था। इन्हें राष्ट्रपति के पास भेजा गया था, लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन्हें पारित मान लिया गया। सरकारी राजपत्र के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया सरकार का यह कदम, केंद्र-राज्य संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है व संघीय ढांचे में शक्ति संतुलन को फिर से परिभाषित करता है।
इसे ऐतिहासिक घटनाक्रम बताते हुए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि डीएमके का मतलब इतिहास बनाना है। इन अधिनियमों में से एक तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम 2020 है। इसके तहत विश्वविद्यालय का नाम बदलकर डॉ. जे. जयललिता मत्स्य विश्वविद्यालय कर दिया है। इसके अलावा राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों में राज्यपाल का दखल खत्म हो जाएगा। इससे उम्मीदवारों को सूचीबद्ध करने और उनकी शैक्षणिक योग्यता और अनुभव तय करने की शक्ति सरकार को मिल गई है। इतना ही नहीं अब राज्य के सीएम यूनिवर्सिटी के कुलपति होंगे।
राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट में डीएमके के वकील पी विल्सन ने कहा कि इतिहास रचा गया है क्योंकि ये भारत में किसी भी विधानमंडल के पहले अधिनियम हैं जो राज्यपाल-राष्ट्रपति के साइन के बिना बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बल पर प्रभावी हुए हैं। हमारे विश्वविद्यालयों को अब सरकार के कुलपतित्व के तहत स्वच्छ बनाया जाएगा और एक नए स्तर पर ले जाया जाएगा। मामले के जानकार अधिकारियों के मुताबिक, डॉ. एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और तमिल यूनिवर्सिटी समेत विश्वविद्यालयों में संशोधनों के तहत गवर्नर और चांसलर शब्दों की जगह सरकार शब्द का इस्तेमाल किया गया है। राज्य के पास अब कुलपतियों को उनके पदों से हटाने का अधिकार भी होगा।
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी। आर्लेकर ने कहा, अगर संविधान संशोधन सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाता है, तो फिर विधायिका और संसद की क्या जरूरत है। अगर सब कुछ अदालतों द्वारा तय किया जाता है, तो संसद की जरूरत खत्म हो जाती है। यह न्यायपालिका का अतिक्रमण है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपना चाहिए था न कि खंडपीठ इस पर फैसला लेती।
केरल के राज्यपाल के इस बयान पर राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस और केरल की सत्ताधारी पार्टी सीपीआईएम ने राज्यपाल की आलोचना की है। सीपीआईएम के महासचिव एमए बेबी ने राज्यपाल के बयान को अवांछित बताया और कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने आर्लेकर के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कोझिकोड में एक कार्यक्रम के दौरान केसी वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अब भाजपा का एजेंडा खुलकर सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण कि केरल के राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हैं।
सीपीआईएम नेता एमए बेबी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी पर लागू होगा, जिसमें राष्ट्रपति भी शामिल हैं। जब राष्ट्रपति संसद के विधेयक में देरी नहीं कर सकते तो फिर राज्यपाल के पास वो अधिकार कैसे हो सकता है, जो राष्ट्रपति के पास नहीं है? बेबी ने कहा कि सभी राज्यपालों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन केरल राज्यपाल के बयान से साफ है कि उन्हें यह स्वीकार नहीं है। उनका सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करना गलत है।