प्लास्टिक बोतल का पानी हमें मार रहा, उनका धंधा चला रहा
प्लास्टिक माफिया और पानी माफिया से इंटरपोल ने किया आगाह
प्लास्टिक कचरे के धंधे में कूदे माफिया और अपराधी
हैदराबाद का भूगर्भ जल सोखने में लगे पानी माफिया
शुभ-लाभ सरोकार
जिस प्लास्टिक की बोतलों और कंटेनरों का पानी हम पी रहे हैं, वह पानी हमारे शरीर में जहर घोलने का काम कर रहा है। प्लास्टिक की बोतलें और कंटेनर कचरे में फेंक दिए गए प्लास्टिक को रीसाइकिल कर बनाए जा रहे हैं और उसी में स्टोर किया हुआ पानी हम पी रहे हैं। प्लास्टिक के बोतलों और कंटेनरों का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो, इसके लिए बाजार में ऐसे रीसाइकिल किए हुए बोतल और कंटेनर ठूंस दिए गए हैं, ताकि कोई दूसरा विकल्प हमारे पास न रहे। अन्य विकल्प काफी महंगे कर दिए गए हैं। यह बाजार नियंत्रण करने वाले माफिया और सिंडिकेट की सुनियोजित चाल है। इसमें सरकारें भी माफिया और सिंडिकेटों का साथ दे रही हैं। सार्वजनिक मंचों पर नेता चाहे भाषण कुछ भी देते हों, प्लास्टिक लॉबी का पैसा खूब खाते हैं और आम जनता को असाध्य रोगों का शिकार होने के लिए विवश करते हैं। भारत में प्लास्टिक माफिया और पानी माफिया का एक ताकतवर सिंडिकेट बन चुका है। सरकार भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। घर-घर में डीप ट्यूबवेल लगाकर पानी खींचा जा रहा है और प्लास्टिक की बोतलों और कंटेनरों में भर-भर कर उसे बाजार में बेचा जा रहा है। सरकार के अलमबरदार नेता घटते भूगर्भ जल का रोना तो रोते हैं, लेकिन माफियाओं और सिंडिकेट का पापजनित धन लेकर खुश होते हैं।
हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पानी की बोतल को लचीला बनाने के लिए इसमें फाथालेट्स और बीसाफेनॉल-ए (बीपीए) नाम का औद्योगिक रसायन मिलाया जाता हैं। यह दिल की बीमारी या मधुमेह की वजह बनता है। बीपीए से उत्पन्न प्लास्टिक प्रदूषण वर्तमान समय की सबसे बड़ी एक वैश्विक पर्यावरणीय चिंता है। अगर लंबे समय तक प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल किया जाए तो इससे पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है, और लड़कियों में जल्दी यौवन हो सकता है। यहां तक कि बोतलबंद पानी का सेवन करने वाले लोगों में लीवर और ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना भी अधिक होती है।
अंतरराष्ट्रीय पुलिस संगठन (इंटरपोल) ने प्लास्टिक अपशिष्ट बाजार में बढ़ती आपराधिक दखलंदाजी पर भारत समेत दुनिया के कई देशों को आगाह किया है। भारत समेत कई देशों से प्लास्टिक कचरा खरीदने से लेकर उसे रीसाइकिल कर उसका सस्ता उत्पाद बनाने के धंधे में पहले चीन की कंपनियों का वर्चस्व था। अधिकांश कम लागत वाले चीन निर्मित जो प्लास्टिक सामान और खिलौने वगैरह आते हैं, वे सब प्लास्टिक कचरे की रीसाइकिल प्रोडक्ट हैं। अब खिलौनों और बर्तनों के बजाय प्लास्टिक कचरे की रीसाइकलिंग से बोतलें और कंटेनर बड़ी तादाद में बनाए जा रहे हैं। दुनियाभर का लगभग 45 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा रीसाइकिल कर उसे फिर इस्तेमाल में लाने का लाभकारी धंधा चीन के माफिया-व्यापारियों के हाथों में केंद्रित था। इसमें इटली के माफिया चीन से सीधे डील करते थे, लेकिन अब इस धंधे में भारत के अपराधी-माफिया गिरोह भी कूद पड़े हैं। ये माफिया न केवल प्लास्टिक कचरा, बल्कि सामान्य कचरे के निष्पादन और रीसाइकलिंग के गोरखधंधे में शामिल होकर अकूत धन कमा रहे हैं।
चीन ने भारत जैसे विकासशील देशों को प्लास्टिक के कचरे से धन कमाना सिखाया। कचरा भी आयात और निर्यात हो सकता है और इससे धन कमाया जा सकता है, यह रास्ता चीन ने खोल दिया। इस तरह प्लास्टिक कचरे के शिपमेंट से लेकर निर्माण तक संलग्न ताकतों ने एक नए प्रकार के अपराध को जन्म दिया... प्लास्टिक कचरा माफिया। कुछ अर्सा पहले इटली में कैराबिनियरी (पुलिस) ने माफिया सरगना क्लाउडियो कार्बोनारो को गिरफ्तार किया था, जो प्लास्टिक रीसाइक्लिंग रिंग चलाता। कार्बोनारो सिसिली के दक्षिण से दूषित प्लास्टिक कचरे को चीन भेजता था। चीन उसके जूते बनाता था और जूतों के तलवों पर जहरीले प्लास्टिक से बने सोल लगा कर बाजार में बेचता था। पोलैंड में, कचरा माफिया प्रतिबंधित प्लास्टिक कचरे से लाखों ज़्लोटी कमाते हैं। यह प्लास्टिक कचरा मानव शरीर पर सीधा वार करता है, जबकि अवैध अपशिष्ट गतिविधियां माफियाओं का बैंक बैलेंस बढ़ाती हैं। सरकार उल्टा उन्हें सब्सिडी भी देती है।
इतालवी अधिकारियों ने इंटरपोल को बताया कि माफिया द्वारा संचालित प्लास्टिक रीसाइक्लिंग गिरोह दक्षिणी द्वीप सिसिली से जहरीला प्लास्टिक कचरा चीन भेजता था। वही प्लास्टिक कचरा जूता बन कर वापस इटली आता था। चीन में बने वे जूते इटली में खूब बिक रहे थे। माफिया कार्बोनारा कुछ ही साल जेल में रहा। फिर वापस लौट आया और एक खतरनाक माफिया सिंडिकेट को अपने कब्जे में ले लिया। फिर वह जहरीले प्लास्टिक के बेहद आकर्षक व्यापार में शामिल हो गया। अब भारत, मलेशिया और कुछ अन्य दक्षिण एशियाई देश के माफिया गिरोह भी इस धंधे में शामिल हैं। मोनोब्लॉक कुर्सियों का उत्पाद और बेतहाशा इस्तेमाल भी प्लास्टिक कचरे के रिसाइकिल उत्पादन का ही नतीजा है। प्लास्टिक की मोनोब्लॉक कुर्सियों का उत्पादन कभी भी पेटेंट के दायरे में नहीं लाया गया इसलिए माफिया और सिंडिकेट ने इसका खूब लाभ कमाया। प्लास्टिक की कुर्सियां स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक पाई गईं, इसीलिए पश्चिमी देशों ने इन कुर्सियों का बहिष्कार कर दिया और स्विट्जरलैंड ने तो इन वस्तुओं पर प्रतिबंध ही लगा दिया। लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में इनकी खपत भयानक स्तर पर बढ़ गई।
प्लास्टिक बोतल के पानी से रहें सावधान..!
ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन (जीएचएमसी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, शहर में प्रतिदिन औसतन 8,000 मीट्रिक टन (एमटी) कचरा निकलता है, जिसमें से 1,080 मीट्रिक टन या 14.5 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा है। आश्चर्य की बात नहीं है कि प्लास्टिक कचरे में सबसे बड़ा योगदान सिंगल-यूज प्लास्टिक का है, जो हैदराबाद में प्रतिदिन लगभग 915 मीट्रिक टन या 20 प्रतिशत है।
भारत का प्रमुख महानगर हैदराबाद प्लास्टिक कचरे के बोझ तले दब रहा है। हैदराबाद शहर में उत्पन्न कुल प्लास्टिक कचरे में से 10 प्रतिशत से अधिक में पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) प्लास्टिक शामिल है, जिसमें बड़े पैमाने पर मिनरल वाटर और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें शामिल हैं। इस्तेमाल की गई पीईटी बोतलों को खुलेआम फेंक दिया जाता है और कूड़ा-करकट फैला दिया जाता है। झीलों और शहर की जल निकासी प्रणाली में बोतलें ठंसी हुए पाई जाती हैं। स्थिति को और भी बदतर बनाते हैं वे सड़क छाप वेंडर्स जो वही लावारिस पीईटी बोतलें उठा कर उनमें पानी भरकर बेच डालते हैं।
पानी माफिया शहर में अवैध प्लांट लगाकर धड़ल्ले से पानी बेच रहे हैं। उनका पानी साफ है या नहीं, लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं होती। वहीं, प्लास्टिक की जिन बोतलों में पानी बेचा जा रहा है, वे भी बीमारियों का खतरा बढ़ा रही हैं। यह बोतलें लंबे समय तक इस्तेमाल की जाती हैं और खराब होने के बाद भी नहीं बदली जाती हैं। वहीं, प्लास्टिक की इन बोतलों में भरा पानी गर्मियों में गर्म हो जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक तापमान बढ़ने की वजह से इन बोतलों से खतरनाक केमिकल पानी में घुलने लगते हैं और कैंसर जैसी बीमारियों की वजह बनते हैं। यह पानी लिवर और पेट से जुड़ी गंभीर बीमारियां भी दे सकता है। जिसके दुष्प्रभाव ताउम्र झेलना पड़ सकता है।
प्लांट में पानी भरने से लेकर बेचने तक सुरक्षा व सफाई से जुड़े मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता। इस तरह, जहां अवैध प्लांट की वजह से भूगर्भ जलस्तर घट रहा है, वहीं दूसरी ओर लोगों की सेहत से भी खिलवाड़ हो रहा है। लेकिन, इनपर कार्रवाई करने में सरकार और सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल है। अवैध रूप से आरओ प्लांट लगाकर पानी सप्लाई करने वाले पानी माफिया का जाल साल दर साल बढ़ता जा रहा है। पानी माफिया 20 लीटर की बोतल के लिए 10 रुपए लेता है। सरकारी तंत्र द्वारा शहर में सप्लाई से आने वाला पानी सीधे पीने लायक नहीं होता है, ऐसे में लोग माफिया से पानी खरीदकर पीने के लिए विवश रहते हैं। प्लांट संचालक लोगों को जो पानी बेच रहे हैं, उसे फिल्टर किए जाने का कोई मानक या भरोसा नहीं है। अधिकतर पानी बिना फिल्टर किए ही 20 लीटर की बोतल में बिकता है। लोगों को लगे कि पानी फिल्टर है, इसके लिए उसमें क्लोरीन पाउडर मिला दिया जाता है।
प्लास्टिक की बोतल वाले पानी में टीडीएस कई बार कम कर दिया जाता है। इसकी वजह से उसमें प्लास्टिक के कण तेजी से घुलते हैं। 100 मिलीग्राम से कम टीडीएस वाला पानी पीने योग्य नहीं होता। वाटर क्वालिटी इंडियन एसोसिएशन के अनुसार भारत के 13 राज्यों में 98 जिलों का पानी पीने योग्य नहीं है। उसे आरओ की मदद से ही पीने योग्य बनाया जा सकता है। शुद्ध पानी को स्वादरहित, रंगरहित और गंधरहित होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन मानता है कि एक लीटर पानी में 300 मिलीग्राम टीडीएस होना चाहिए। 300 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम के बीच टीडीएस मतलब आवश्यकता से अधिक मिनरल्स। आवश्यकता से कम और आवश्यकता से अधिक दोनों ही प्रकार का मिनरल्स हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
प्लास्टिक कचरा बढ़ाने में भी हैदराबाद अव्वल है
भारत दुनिया में प्लास्टिक कचरे का सबसे अधिक उत्पादन करता है। यहां एक साल में 1.02 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जो दूसरे सबसे बड़े प्लास्टिक कचरा उत्पादक के मुकाबले दो गुना से भी अधिक है। सामान्य कचरे से हर देश परेशान है। लेकिन प्लास्टिक कचरा सबसे ज्यादा खतरनाक है। वैज्ञानिक शोध और अध्ययन से पता चला है कि भारत में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा निकलता है। ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया हर साल 5.7 करोड़ टन प्लास्टिक प्रदूषण पैदा करती है। यह कचरा सबसे गहरे महासागरों से लेकर सबसे ऊंचे पर्वत शिखर और लोगों के शरीर के अंदर तक विष फैलाता है। इस वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक इस 5.7 करोड़ टन प्लास्टिक कचरे का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा वैश्विक दक्षिण से आता है। प्लास्टिक कचरा शरीर से लेकर पर्यावरण तक को भीषण नुकसान पहुंचता है।
रिसर्च के मुताबिक दुनिया में हर साल इतना प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जो न्यूयॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क में एम्पायर स्टेट बिल्डिंग जितनी ऊंचाई तक पहुंच सकता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए दुनिया भर के 50 हजार से अधिक शहरों और कस्बों में स्थानीय स्तर पर उत्पादित कचरे की जांच की है। इस अध्ययन के दौरान ऐसे प्लास्टिक की जांच की गई जो खुले वातावरण में जाता है। दुनिया की 25 प्रतिशत आबादी से सरकार प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करने और निपटाने में विफल है। इस 25 फीसदी आबादी में भारत के 50 करोड़ से अधिक लोग शामिल हैं।
वैज्ञानिक शोध में पाया गया है कि भारत की राजधानी नई दिल्ली, तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई और पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भीषण प्लास्टिक कचरा और प्लास्टिक प्रदूषणकर्ता शहरों में शामिल है। भारत के बाद सबसे अधिक प्लास्टिक प्रदूषण नाइजीरिया और इंडोनेशिया फैलता है। इस मामले में चीन चौथे स्थान पर है, हालांकि वह कचरे को कम करने में सफलता हासिल कर रहा है। प्लास्टिक प्रदूषक के मामले में पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलावा रूस और ब्राजील भी जिम्मेदार है।