जज यशवंत वर्मा मामले में भी ऐसा ही होने का अंदेशा
पूर्व जज निर्मल यादव का भ्रष्टाचार-प्रकरण 17 साल बाद खारिज
ट्रांसफर हुआ, जांच चलेगी, फिर सब फाइल 'क्लोज'
चंडीगढ़/दिल्ली, 31 मार्च (एजेंसियां)। चंडीगढ़ की अदालत ने शनिवार 30 मार्च को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव को भ्रष्टाचार के मामले से बरी कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से नोटों का जखीरा मिलने पर दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह का रवैया अपनाया, चंडीगढ़ की अदालत का फैसला उसी रवैये की सनद है। स्पष्ट है कि जो दिल्ली में चल रहा है, वही पूरे देश में चल रहा है। पूरे देश में न्यायिक प्रणाली की यही स्थिति है।
वर्ष 2008 में ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जज निर्मल यादव एवं अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। जज निर्मल यादव के अलावा उस मामले में शामिल तीन अन्य लोगों रवींद्र सिंह भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह को भी बरी कर दिया गया है। जिस समय जज निर्मल यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था, उस समय वह हाईकोर्ट की जज और तत्कालीन न्यायिक अधिकारी थीं। यह पूरा मामला 15 लाख रुपए से भरा बैग पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की जज निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंचाए जाने को लेकर था। बैग पहुंचने पर जस्टिस कौर के चपरासी ने इस मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी थी। इसके बाद चंडीगढ़ पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी। बाद में पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल के आदेश पर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की, लेकिन कुछ समय के बाद केस को बंद करने के लिए कोर्ट में कोर्ट क्लोजर रिपोर्ट डाल दी।
लेकिन अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी थी। बाद में खुलासा हुआ कि रुपए से भरा बैग जज निर्मल यादव के लिए भेजा गया था, लेकिन नाम की गलतफहमी के कारण वह निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गया। साल 2011 में सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। साल 2014 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने पांच आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। जस्टिस कौर ने साल 2016 में कोर्ट में अपना बयान रिकॉर्ड कराया। मुख्य आरोपियों में से एक पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने कोर्ट में इस केस को बंद करने का आवेदन दिया। बंसल ने कहा कि वह सिर्फ कूरियर ब्वॉय थे और होटल व्यवसायी रवींद्र सिंह का पैसा जज निर्मल यादव तक पहुंचाने गए थे। बाद में दिसंबर 2016 में मोहाली में बंसल की मौत हो गई। इसके बाद जनवरी 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई। इसमें कुल 84 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के क्लर्क ने यह पैसा भेजा था।
साल 2010 में जस्टिस निर्मल यादव को उत्तराखंड हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। वह उत्तराखंड हाईकोर्ट से ही रिटायर हो गईं। अब वह मामला भी समाप्त हो गया। यानि, भ्रष्टाचार में लिप्त जज बेदाग हो गईं। साफ है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी जज हो, उसे न्यायपालिका बेदाग ही रखेगी। चाहे वह जज निर्मल यादव हों या जज यशवंत वर्मा। सवाल उठ रहा है कि वर्मा के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई? किसी भी भ्रष्टाचारी जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का एकाधिकार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास ही क्यों केंद्रित है? किसी भी जज के खिलाफ शिकायत भारत के मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या राष्ट्रपति को दी जा सकती है। अगर शिकायत हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या राष्ट्रपति को भी जाती है तो वह शिकायत भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास ही भेज दी जाती है। वे चाहे उसे स्वीकार करें या खारिज कर दें। वी. रामास्वामी बनाम भारत संघ (1991) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट जजों के बचाव का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इस फैसले के बाद जजों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश के हाथों में दे दिया गया।
इसी अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट ने वह याचिका खारिज कर दी जिसमें जज यशवंत वर्मा पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर मामले की इन-हाउस जांच जारी है। यह जांच भी उसी तरह जारी रहेगी जैसे जज निर्मल यादव मामले में जारी थी और 17 साल बाद खारिज कर दी गई। जज यशवंत वर्मा प्रकरण के बारे में भी देश को ऐसी ही आशंका है।