35 दवाओं पर सरकार ने फिर लगाई पाबंदी
आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी फैसला
नई दिल्ली, 18 अप्रैल (एजेंसियां)। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के औषधि नियंत्रकों को पैंतीस दवाओं पर पाबंदी लगाने का निर्देश आम जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा के मद्देनजर एक जरूरी कदम है। मगर इससे एक बार फिर यही साफ होता है कि दवा कंपनियां किस तरह आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रही हैं। गौरतलब है कि सीडीएससीओ ने पैंतीस फिक्स्ड-डोज काम्बिनेशन यानी एफडीसी दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण को रोकने का निर्देश दिया है, जिनमें दर्द निवारक, पोषण संबंधी पूरक आहार और मधुमेह रोधी दवाएं शामिल हैं।
इस प्रतिबंध का उद्देश्य इन दवाओं की वजह से जन स्वास्थ्य और सुरक्षा के सामने पैदा हो रहे खतरों को रोकना है। मगर सवाल है कि सरकार के संबंधित महकमों के तहत एक व्यापक तंत्र होने के बावजूद ये दवाएं खुले बाजार में कैसे पहुंचती हैं। किसी भी दवा के उत्पादन और उसके बाद बाजार में आकर एक जरूरतमंद उपभोक्ता तक पहुंचने की प्रक्रिया होती है। अगर कुछ दवाएं लंबे समय तक बाजार में बिकती रहती हैं तो उससे उपजे जोखिम के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?
पिछले वर्ष अगस्त में भी बुखार, सर्दी, एलर्जी और दर्द के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक सौ छप्पन एफडीसी दवाओं पर पाबंदी लगा दी गई थी। तब भी यह कहा गया था कि ये दवाएं इंसान के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। ऐसे निर्देश अक्सर जारी किए जाते रहे हैं। मगर यह समझना मुश्किल है कि सख्ती के बावजूद फिर से कुछ ऐसी दवाएं खुले बाजार में कैसे पहुंच जाती हैं।
दवा कंपनियों के लिए वे कैसे नियम-कायदे तय किए गए हैं, जिसके तहत वे ऐसी दवाओं का उत्पादन करती हैं और उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाता है, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती हैं? अगर ऐसी दवाएं बनाने वाली कंपनियां राज्यों के प्राधिकरणों से इसके लिए लाइसेंस मिलने को ढाल बनाती हैं, तो क्या इन कंपनियों के साथ-साथ उन्हें इजाजत देने वाले संबंधित महकमों को भी कठघरे में खड़ा किया जाएगा?
सही है कि सीडीएससीओ ऐसी दवाओं को चिह्नित करती है और उसे प्रतिबंधित करने का फैसला करती है। मगर जितने दिनों तक लोगों की सेहत को खतरे में डालने वाली ऐसी दवाएं बिकती रहती हैं, जरूरतमंद लोग उन दवाओं का सेवन करते हैं, उसका क्या और कितना असर पड़ता होगा? पैंतीस या एक सौ छप्पन दवाओं पर पाबंदी लगाने की नौबत तभी आई, जब उसे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक पाया गया। अगर किसी बीमारी के इलाज के क्रम में दी जाने वाली दवा को खतरनाक पाया जाता है, तो यह सुनिश्चित कब होता है?
जिन दवाओं को जोखिम के दायरे में पाया जाता है, उनके परीक्षण और उसके नतीजों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हुए बिना आम लोगों के लिए उसके उत्पादन, बिक्री या वितरण की इजाजत किस आधार पर दी जाती है? सुरक्षा और प्रभावकारिता के मूल्यांकन के बिना वैसी दवाओं के उत्पादन, बिक्री और वितरण के लिए लाइसेंस कैसे जारी कर दिया गया और चिकित्सक उनके सेवन की सलाह किस आधार पर देते हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है? सेहत पर कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव पहले ही जटिल समस्या बने हुए हैं। ऐसे में जन स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाली दवाओं के उत्पादन और बिक्री को लेकर बेहद सख्त नियम-कायदे लागू नहीं किए गए तो इसका गंभीर खमियाजा सबको उठाना पड़ सकता है।