यतनाल के निष्कासन से भाजपा को पंचमसाली वोट खोने का डर
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| बीजापुर विधानसभा क्षेत्र से हिंदू फायरब्रांड विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में छह साल के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित किए जाने के मामले के कारण भाजपा को पंचमसाली समुदाय के वोट खोने का खतरा मंडरा रहा है, जो एक ठोस आधार था|
गांव से लेकर दिल्ली तक किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों की जीत या हार में पंचमसाली समुदाय की अहम भूमिका रही है| वे विशेष रूप से कल्याण कर्नाटक क्षेत्र में प्रचलित हैं, जिसमें बल्लारी, रायचूर, कोप्पल, बागलकोट, बीदर, विजयपुर, कलबुर्गी और विजयनगर शामिल हैं| साथ ही कल्याण कर्नाटक में हावेरी, धारवाड़ और बेलगावी शामिल हैं, और मध्य कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी, जिनमें दावणगेरे, शिवमोग्गा और चित्रदुर्ग शामिल हैं| जब राज्य में भाजपा-जेडीएस गठबंधन सरकार सत्ता विवाद के कगार पर थी तब भाजपा विश्वशैव-लिंगायत समुदाय के वोटों को आकर्षित करने में सफल रही| यह वह दौर था जब येदियुरप्पा, जो अब तक एक साधारण नेता थे, वीरशैव समुदाय के एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे| यह कोई रहस्य नहीं है कि इस समुदाय ने तब से लेकर २०२३ के विधानसभा चुनाव तक भाजपा का समर्थन किया है|
हालाँकि, जब केंद्रीय भाजपा नेताओं ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया, तो यही समुदाय थोड़ा कांग्रेस की ओर झुक गया| हालाँकि, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर इस समुदाय का वोट आकर्षित करने में सफल रही| अब, पंचमसाली समुदाय के एक प्रभावशाली नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल को भाजपा की केंद्रीय अनुशासन समिति ने मनमाने ढंग से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है| राजनीतिक क्षेत्र में इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि क्या आने वाले दिनों में यह लोटस पार्टी के लिए महंगा साबित होगा| पंचमसाली समुदाय के जया मृत्युंजय स्वामीजी ने सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदुयुरप्पा और राज्य भाजपा अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र यतनाल के निष्कासन का मुख्य कारण थे| यह चेतावनी कि यदि यतनाल का निष्कासन वापस नहीं लिया गया तो पूरा पंचमसाली समुदाय भाजपा को सबक सिखाएगा, भाजपा के लिए एक कड़वी गोली बन गई है| क्या यतनाल के निष्कासन से राज्य भाजपा में सब कुछ ठीक हो जाएगा? क्या कल से भाजपा गुट-मुक्त हो जाएगी? राजनीतिक गलियारों से ऐसे सवालों का जवाब हमेशा नहीं ही मिलता है|
यह मानना मुश्किल है कि आलाकमान के फैसले से राज्य में भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बनेगा| वर्तमान स्थिति में, आलाकमान के नेता मतभेदों को सुलझाने के लिए राज्य के वरिष्ठ नेताओं और गुटबाजी में शामिल नेताओं को एक साथ ला सकते थे| लेकिन यदि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया होता और उन्हें निष्कासित कर दिया होता, तो क्या समस्याएं हल हो जातीं? राज्य में भाजपा की कहानी पहले से ही घर-घर में चर्चित है| २०२३ के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी कमजोर होती जा रही है|
इसके अलावा, नेताओं के बीच असंतोष पार्टी संगठन के लिए हानिकारक होता जा रहा है| विशेषकर बी.वाई. विजयेंद्र के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कई वरिष्ठ नेताओं की पार्टी संगठन में रुचि खत्म हो गई है, क्योंकि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं दिया गया| बी.एस. येदियुरप्पा को २०२१ में सीएम पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को इस पद पर लाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता, बाद के घटनाक्रम से स्तब्ध हैं| जब २०२३ के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा, तब आलाकमान की नींद खुली और उसने बी.एस. येदियुरप्पा को पार्टी में सक्रिय किया| इस प्रकार, पार्टी से दूर चले गए लिंगायत वोट को वापस जीतने के लिए, बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे बी.वाई. विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया गया| यहां जो हुआ वह हाईकमान की अपेक्षा के विपरीत था| लिंगायत नेताओं ने सबसे पहले विजयेंद्र की प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति का विरोध किया था| उस समय प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए बड़ी संख्या में उम्मीदवार थे|
बसनगौड़ा पाटिल यतनाल, सी.टी. रवि, सुनील कुमार और अन्य ने पर्दे के पीछे से प्रयास किया था| लेकिन आलाकमान को किसी की परवाह नहीं थी, उसने बी.वाई. विजयेन्द्र को पद पर नियुक्त किया| यद्यपि इससे कई वरिष्ठ नेताओं में असंतोष पैदा हुआ, लेकिन कुछ लोग चुप रहे, तथा बाहरी तौर पर इसे प्रदर्शित करने के बजाय, मन ही मन कोसते रहे| बसनगौड़ा यतनाल अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो चुप नहीं रहे| उनका मानना था कि भले ही उन्हें अध्यक्ष पद न मिले, लेकिन कम से कम विधान सभा में विपक्षी दल की सीट तो मिल ही जाएगी| लेकिन वह भी उपलब्ध नहीं था| उनका मानना था कि भाजपा के सत्ता में रहते हुए उन्हें मंत्री पद दिया जाएगा|