सैनिकों का हक छीन कर अपनी सैलरी और पेंशन बढ़ाते हैं

 सैनिकों को विकलांग पेंशन देने से भी इन्कार : ऐसी सरकार को धिक्कार  

 सैनिकों का हक छीन कर अपनी सैलरी और पेंशन बढ़ाते हैं

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत सरकार के अमानुषिक रवैये की निंदा की

सैनिक सीमा पर मरते हैं और सांसद कैपेचीनो की चुस्कियां लेते हैं

 

नई दिल्ली, 31 मार्च (एजेंसियां)। भ्रष्ट जज को बचाने में पूरी सक्रियता (एक्टिविज्म) दिखाने वाली ऊंची अदालतें सैनिक की विकलांगता पेंशन पर कितनी कायर और लाचार दिखती हैं, उसका नमूना दिल्ली हाईकोर्ट में पेश हुआ है। इस त्रासद स्थिति पर न शीर्ष अदालत को शर्म आती है और न अपनी सैलरी और पेंशन बढ़ाने वाले शीर्ष सत्ताधीशों, सांसदों और विधायकों को। सैनिकों की विकलांगता पेंशन को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने जिस तरह सरकार को धिक्कारा है, उससे सरकार को सीख लेनी चाहिए।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना के दो जवानों को विकलांगता पेंशन के भुगतान का आदेश जारी करने में अपनी अक्षमता सार्वजनिक तौर पर जाहिर की है। दिल्ली हाईकोर्ट के जजों ने दो सैनिकों की विकलांगता पेंशन में हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए देश के सत्ता सियासतदानों को सीख भी दी है। लेकिन नैतिकता की इस सीख से बेशर्म जमातों का क्या लेना देना। हाईकोर्ट ने कहा, सैनिक कठोर और दुर्गम परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हैं। देश की सेवा करने की इच्छा के साथ बीमारी और विकलांगता की आशंका भी जुड़ी होती है। सैनिकों के बीमार होने या विकलांग होने पर उनकी सुविधाएं और उनकी पेंशन सुनिश्चित करने की नैतिक जिम्मेदारी सरकार और संसद की है।

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने इस प्रसंग पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के कथन का उल्लेख किया, हम चिमनी के पास बैठकर अपनी गर्म कैपेचीनो की चुस्कियां ले रहे होते हैंतब सैनिक सीमा पर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुएएक पल में अपनी जान देने के लिए तैयार रहते हैं। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, इसलिए देश की सेवा करने की इच्छा और दृढ़ संकल्प के साथ बीमारी और विकलांगता की संभावना एक पैकेज डील के रूप में आती है। सबसे बहादुर सैनिकजिन परिस्थितियों में देश की सेवा करते हैंउनमें शारीरिक बीमारियों का शिकार होने की संभावना होती हैजो कभी-कभी विकलांगता के रूप में आ सकती है। इससे वह सैन्य सेवा जारी रखने में असमर्थ हो जाता है। पीठ के दूसरे जज जस्टिस अजय दिगपाल ने कहा, ऐसी परिस्थितियों में देश कम से कम इतना तो कर ही सकता है कि सैनिक द्वारा की गई निस्वार्थ सेवा के बदले मेंउसके शेष बचे वर्षों में सांत्वना, सुविधा और आराम प्रदान करे। दिल्ली हाईकोर्ट के जजों का यह कथन आम नागरिकों का हृदय झकझोरने वाला है, लेकिन अग्निवीर जैसे अमानुषिक योजनाएं लाने वाली सरकार के पास न हृदय है और न शर्म।

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने कहाराष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के अपने उद्घाटन भाषण के दौरान कहे गए प्रेरक शब्द आज भी देशभक्ति और अपने देश के प्रति प्रेम के सभी अर्थों का शानदार सारांश प्रस्तुत करते हैं। यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है यह पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो। कुछ लोग हैं जो इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं और अपने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने को तैयार रहते हैं। जब हम चिमनी के पास बैठकर अपनी गर्म कैपेचीनो की चुस्की ले रहे होते हैंतो वे सीमा पर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुएएक पल की सूचना पर अपने जीवन का बलिदान देने को तैयार रहते हैं। क्या राष्ट्र और हम इसके नागरिकमातृभूमि के इन सच्चे सपूतों को जो कुछ भी दे सकते हैंवह कभी भी बहुत अधिक हो सकता है?

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विकलांगता पेंशन का पहला मामला पूर्व सूबेदार गवास अनिल माडसो का था। 1985 में ही वे सैन्य सेवा में आए। 2015 में डायबिटीज मेलिटस टाइप-2 से पीड़ित होने के कारण सेवा से हटा दिए गए। रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबीने उनकी विकलांगता को 20 प्रतिशत स्थायी मानालेकिन विकलांगता पेंशन देने से इन्कार कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार की इस सोच पर सवाल उठाते हुए कहा 34 साल की सेवा के बाद किसी भी बीमारी को गैर-सैन्य कारण बतानासैनिकों के बलिदान का सरासर अपमान है।

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दूसरा मामला अमीन चंद का थाजिन्होंने 2005 में सेना की नौकरी ज्वाइन की और 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले थे,  लेकिन सेवा के दौरान उन्हें परिधीय धमनी संकुचन रोग हो गया। उन्हें 20 प्रतिशत विकलांग होने के बावजूद विभाग ने विकलांगता पेंशन से वंचित कर दिया। सशस्त्र बल प्राधिकरण ने उनके पक्ष में फैसला दिया लेकिन केंद्र सरकार ने पेंशन देने से मना कर दिया और उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, देश के सैनिक जब तक युद्ध में होते हैं तब तक वे हमारे नायक होते हैंलेकिन जब वे सेवा से बाहर होते हैंतो उन्हें उनका हक देने से इन्कार करना सरासर अन्याय है।

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केंद्र सरकार लगातार यही कर रही है। सैनिकों की विकलांगता पेंशन देने को लेकर केंद्र का अमानवीय रवैया सैनिकों को काफी हतोत्साहित कर रहा है। विकलांगता पेंशन देने के नाम पर रिलीज मेडिकल बोर्ड को आगे कर टाल मटोल किया जाता है और विकलांगता को 20 फीसदी से नीचे दिखाने की आपराधिक कोशिशें की जाती हैं। केंद्र सरकार ने अग्निवीर योजना लाकर सैनिकों का पूरा पेंशन हड़प लिया और उसे सांसदों को दे दिया। उसी तरह विकलांगता पेंशन भी नेताओं की अय्याशियों में खर्च होगी। सरकार में स्थायी नौकरियां हटा कर आउटसोर्सिंग पर दे दिया। सेना की छावनियां रियल इस्टेट सिंडिकेट्स को दे दीं। आर्मी वेटनरी कोर खत्म कर लाखों एकड़ जमीनें और बेशकीमती गायें बेच डालीं। राष्ट्रवाद का नारा, सैनिकों को कितने दिन शहादत के लिए प्रेरित करेगायह अहम प्रश्न सामने है।

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