रूस के बाद फ्रांस भी भारत में पक्ष में
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी मजबूत
भारत के रास्ते में बाधाएं खड़ी कर रहा है चीन
नई दिल्ली, 17 अप्रैल (एजेंसियां)। यह भारत की कूटनीतिक दक्षता ही मानी जाएगी कि एक बाद एक विश्व के अनेक शक्तिशाली देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिए जाने की वकालत कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद के पी-5 देशों में से बस चीन ही एक ऐसा देश है जो वैसे तो भारत से एक बार फिर निकटता बढ़ाने की आतुरता दिखा रहा है लेकिन दूसरी तरफ सुरक्षा परिषद में भारत के शामिल होने की राह में रोड़े अटका रहा है। बीते दो दिन में रूस और फ्रांस द्वारा क्रमश: उस अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मंच पर भारत के होने के महत्व को रेखांकित करते हुए मजबूत वकालत की गई है। फ्रांस सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य है, लिहाजा सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का समर्थन करना काफी अहमियत रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने उद्बोधन में सुरक्षा परिषद के विस्तार को समय की मांग बताया था।
भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए विशेषज्ञ फ्रांस और रूस के समर्थन को एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं। फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा को पत्र लिखा है। इससे ठीक पहले रूस ने भी भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन व्यक्त किया था। दोनों प्रमुख देशों व अन्य देशों का समर्थन भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने और यूएनएससी में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से यूएनएससी में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत का तर्क है कि वर्तमान सुरक्षा परिषद 1945 में स्थापित की गई थी और यह 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती। भारत का कहना है कि वह एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है और उसकी स्थायी सदस्यता से सुरक्षा परिषद अधिक प्रभावी और प्रतिनिधित्वपूर्ण बनेगी।
फ्रांस और रूस जैसे देशों का समर्थन भारत की दावेदारी को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम भी भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते आए हैं। यह समर्थन भारत की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत को मान्यता देता है। चीन भारत की स्थायी सदस्यता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। चीन ने हमेशा भारत की दावेदारी का विरोध किया है। वह अब भी सुरक्षा परिषद में सुधार के किसी भी प्रस्ताव को रोकने के लिए अपने वीटो का उपयोग कर सकता है। स्पष्ट रूप से चीन का यह विरोध मुख्य रूप से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से है।
भारत को ब्राजील, जर्मनी और जापान जैसे जी-4 देशों का समर्थन प्राप्त है, जो यूएनएससी में सुधार और स्थायी सदस्यता के विस्तार की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा, अफ्रीकी देशों को भी स्थायी सदस्यता देने की मांग की जा रही है, जिससे सुरक्षा परिषद अधिक समावेशी बन सके। भारत खुद इस बारे में अनेक बार अपना मत व्यक्त कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने उद्बोधन में इस ओर संकेत करते हुए इसे समय की मांग बताया था। यूएनएससी में सुधार के लिए व्यापक सहमति की आवश्यकता है, जो वर्तमान भू राजनीतिक परिदृश्य में आसान नहीं दिखती। चीन और रूस जैसे देशों के साथ पश्चिमी देशों की प्रतिस्पर्धा और सतत तनाव इस प्रक्रिया को और जटिल बना देते हैं। सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की संभावना बढ़ रही है, लेकिन यह पूरी तरह से वैश्विक सहमति और चीन जैसे देशों के रुख पर निर्भर करती है। फ्रांस और रूस का समर्थन भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसे वास्तविकता में बदलने के लिए भारत को कूटनीतिक प्रयासों को और तेज करना होगा।