परतंत्र भारत में स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली तिरंगी बर्फी और पूजन-अनुष्ठान से लेकर साज-सज्जा के सामान के तौर पर देश-विदेश में छाने वाली ढलुआ मूर्ति धातु शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) बनारस की बौद्धिक संपदा के रूप में पंजीकृत हो गई है।
वासंतिक नवरात्र की अष्टमी पर मंगलवार को जीआइ रजिस्ट्री चेन्नई की वेबसाइट पर इन दोनों उत्पादों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग जारी करने की सूचना जारी कर दी गई। इस तरह काशी क्षेत्र यानी पूर्वांचल में कुल 34 जीआई टैग युक्त उत्पाद हो गए हैं। यह किसी भू-भाग विशेष के नाम सर्वाधिक बौद्धिक संपदा अधिकार का रिकार्ड माना जा रहा है।
इसके अलावा बरेली जरदोजी, केन-बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी, पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल का भी जीआइ पंजीकरण जारी किया गया है। इसके साथ प्रदेश स्तर पर जीआइ उत्पादों की संख्या अब 75 हो गई है। इसमें 58 हस्तशिल्प और 17 कृषि एवं खाद्य उत्पाद हैं। यह किसी राज्य के नाम सर्वाधिक जीआइ टैग का रिकार्ड है।
जीआइ विशेषज्ञ पद्मश्री डा. रजनीकांत ने बताया कि 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी और भदोही हस्तनिर्मित कालीन ही जीआइ पंजीकृत थे। मात्र नौ वर्षों में यह संख्या 34 तक पहुंच गई है। इससे भारत की समृद्ध विरासत को अंतरराष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली।